उल्लू की भाषा (बादशाह अकबर और बीरबल)
बादशाह अकबर शिकार से लौट रहे थे| हमेशा की तरह बीरबल भी उनके साथ था| लौटते समय अचानक बादशाह अकबर की नजर एक पेड़ पर पड़ी, जिस पर बैठे दो उल्लू आपस में बहस कर रहे थे|
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वे दोनों उल्ली क्यों उड़ रहे थे या क्या बातें कर रहे थे यह जानना तो असंभव था, फिर भी बादशाह से रहा न गया और बीरबल से बोले – “यह दोनों उल्लू आपस में क्या बातें कर रहे होंगे?”
बादशाह का सवाल सुनकर बीरबल भी सोच में पड़ गया| कुछ देर सोचने के बाद जैसे कुछ याद आ गया, बोला – “हुजूर, मुझे इनकी भाषा समझ में आ गई है, किंतु जो यह बोल रहे हैं वह सुनकर आप नाराज हो जाएंगे|”
“हम नाराज नहीं होंगे, तुम बताओ, यह दोनों उल्लू क्या बोल रहे हैं?”
“हुजूर, यह दोनों उल्लू विवाह की बातें कर रहे हैं| एक उल्लू वर पक्ष का है और दूसरा वधू पक्ष का| इन दोनों की बातचीत दहेज पर आकर अटक गई है, वर पक्ष दहेज में तीस जंगल की मांग कर रहा है और वधू पक्ष फिलहाल बीस जंगल देने को तैयार है, कहता है दस जंगल बाद में देगा, किंतु वर पक्ष यह दलील नहीं मान रहा| उनका कहना है कि जो अभी नहीं दे सकता, वह बाद में कहां से देगा| हुजूर, इस बात पर वधू पक्ष ने अपनी सफाई में कहा कि हमारे बादशाह को शिकार खेलने का बहुत शौक है और वे शिकार के लिए जंगलों की बढ़ोतरी करते रहते हैं, भले ही इसके लिए उन्हें गांव उजाड़ने पड़ जाएं| कुछ गांव वे उजाड़ चुके हैं और यकीनन आगे भी उजाड़ेंगे, तब मैं तुम्हें शेष दस जंगल दहेज में दे दूंगा|”
बादशाह अकबर समझ गए कि बीरबल ने उन पर व्यंग्य कसा है, क्योंकि बादशाह अकबर ने शिकार खेलने के लिए कई जंगलों का निर्माण गांवों को उजाड़कर किया था| इस घटना के बाद बादशाह अकबर का मन बदल गया और उन्होंने शिकार खेलना बहुत कम कर दिया और उजाड़े गए गांवों को भी दुबारा बसा दिया|