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तेरहवाँ वर्ष

तेरहवाँ वर्ष

मत्स्यराज विराट एक उदार, स्नेहशील राजा थे| विराट की पत्नी सुदेष्णा का भाई कीचक उनका सेनापति था| वह बहुत ही शक्तिशाली और क्रूर था| इसलिए विराट पर आक्रमण करने का साहस कोई नहीं करता था|

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पहचाने जाने के भय से पांचो पांडव एक-एक करके मत्स्य देश आए|

मत्स्य जाने से पहले उन्होंने पूजा की सभा सामग्री ऋषियों को दे दी| अपने सब अस्त्र बाँधकर एक वृक्ष के खोकले भाग में छिपा दिए| वे किसी से युद्ध नहीं करना चाहते थे इसलिए उन्होंने सोचा कि एक वर्ष के लिए इनकी आवश्यकता नहीं होगी| यह डर भी था कि उन्हें हथियारों के माध्यम से कोई पहचान न ले क्योंकि उनके शस्त्र उतने ही प्रसिद्ध थे जितने वे स्वयं|

राजा विराट की सभा में क्रमशः युधिष्ठिर उनके सलाहकार, भीम मुख्य रसोइए और मल्ल युद्ध के शिक्षक अर्जुन नृत्य कला के शिक्षक, तथा नकुल और सहदेव राजा घोड़ों और मवेशियों की देखभाल करने के लिए नियुक्त किये गए| रानी सुदेष्णा को द्रौपदी का सुसभ्य आचरण और व्यवहार अच्छा लगा और उन्होंने द्रौपदी को निजी सेविका के रूप में रखा| द्रौपदी ने कहा, “मै केवल आपकी और राजा की सेवा करूंगी और यहां एक वर्ष के लिए रहूँगी| मेरा नाम सैरेन्ध्री है| मै रानी द्रौपदी की सेविका थी परन्तु हस्तिनापुर से पांडव के जाने के पश्चात मुझे दूसरा काम ढूंढ़ना पड़ा|”

इस तरह दस मास निर्विघ्न और शीघ्रता से व्यतीत हो गए| पांडव मत्स्य राज्य में रहकर अपने-अपने कार्यो में जुट रहे उन्होंने किसी ने नहीं पहचाना| एक दिन कीचक की दृष्टि द्रौपदी पर पड़ी और उसने अपने बहन रानी सुदेष्णा से कहा, “वह मेरी भी सेवा करेगी|” परन्तु द्रौपदी ने रानी को याद दिलाया, “मेरे पांच पति है, जो गंधर्व हैं| यदि उन्हें यह ज्ञात हो गया कि मुझे कीचक की सेवा के लिए बाध्य किया जा रहा है तो वे क्रोधित होंगे और सम्भवतः हम सबको मार भी डालें|” परन्तु किसी में इतना साहस नहीं था जो कीचक को रोक पाता| युधिष्ठिर यह सब जानकर बहुत दुखी हुए कि उनके कारण ही उनकी पत्नी और अनुजों को अनेक कष्टों का सामना करना पड़ रहा था| पर वे विवश थे|

द्रौपदी को रात्रि के समय जब अवसर मिला तो भीम से कहा, “मै कीचक से घृणा करती हूं और उसकी दासी नहीं बन सकती|”

भीम ने उत्तर दिया, “मै कीचक को मार डालूंगा| मै तुम्हारे साथ आशिष्ट व्यवहार करने का उसे साहस कैसे हुआ? तुम उससे कहना कि वह रात्रि के समय नृत्य कक्ष में मिले| शेष मुझ पर छोड़ दो|”

कीचक प्रसन्नता पूर्वक रात्रि में नृत्य कक्ष में गया| अकस्मात एक विशाल और प्रबल मनुष्य ने उसे जकड़ लिया और दो बलवान हाथों ने उसके गले को दबा डाला| निस्संदेह वे प्रबल भुजाएं भीम की थी| द्रौपदी परदे के पीछे खड़े चुपचाप सब देखती रही| शीघ्र ही भीम ने कीचक को मृत्यु की गोद में सुला दिया| द्रौपदी और भीम निशब्द वहाँ से अपने-अपने कक्षों में चले गए|

प्रातः काल होते ही कीचक की मृत्यु का समाचार अग्नि की लपटों की चारों ओर फैल गया| सभी आश्चर्यचकित थे| कीचक को भला कौन मार सकता है?

रानी सुदेष्णा ने कहा, “अवश्य ही सैरंध्री के गंधर्व पतियों में से एक ने मेरे भाई को मारा होगा|” वह अपने मृत भाई के लिए शोक करने लगी|

हस्तिनापुर में दुर्योधन ने जब यह समाचार सुना कि कीचक मारा गया है तो वह चिल्ला उठा, “निस्संदेह यह भीम होगा| केवल भीम ही कीचक को मार सकता है| हम मत्स्य के विरुद्ध युद्ध करेंगे| राजा विराट की ओर से जब पांडव युद्ध करेंगे तो वे पहचाने जाएँगे और पुनः उन्हें निर्वासित होना पड़ेगा|”

दुर्योधन ने शीघ्र ही मत्स्य पर आक्रमण की योजना बना डाली| अपने मित्र राजा सुशर्मा से उसने मत्स्य पर दक्षिण की ओर से आक्रमण करने को कहा|

यह समाचार सुनकर युधिष्ठिर ने कहा, “महाराज, आप चिंतित न हों| जब मै सम्राट युधिष्ठिर की सेवा में इंद्रप्रस्थ में था, उस समय मैंने युद्ध कला सीखी थी| मै वल्लव, तंत्रिपाल और ग्रंथिक के साथ आपकी सहायता करूँगा|”

चारों पांडवों ने राजा विराट की सेना सहित सुशर्मा के विरुद्ध युद्ध किया और उन्हें परास्त कर दिया| इसी बीच दुर्योधन की सेना ने उत्तर की ओर से आक्रमण कर दिया| जब यह समाचार मिला कि कौरव सेना आगे बढ़ रही है, उस समय महल में केवल विराट के पुत्र उत्तर कुमार ही थे|

राजकुमार उत्तर भयभीत हो उठे और बोले, “मै क्या करूँ? मै अकेला युद्ध नहीं कर सकता|”

वृहन्नला (अर्जुन) ने आकर उत्तर को सांत्वना दी और कहा, “हम उनसे युद्ध करेंगे और मै आपका सारथी बनूँगा|” सभी वृहन्नला की ओर आश्चर्यचकित होकर देखने लगे| पुरुषों की भांति दिखने वाली यह नृत्य शिक्षिका भला क्या कर पाएगी?

राजकुमार ने पूछा, “एक स्त्री भला युद्ध कैसे कर सकती है? मै तुम्हारे साथ नहीं जाउँगा|”

वृहन्नला ने कहा, “तुम अवश्य जाओगे| तुम्हें जाना ही होगा, नहीं तो तुम अपने पिता का राज्य खो दोगे|” वृहन्नला (अर्जुन) शीघ्रतापूर्वक उत्तर कुमार के साथ रथ पर सवार होकर रथ उस ओर ले गई जहां पांडवों ने अपने हथियार छिपा रखे थे| विश्वास दिलाते हुए उसने कहा, “मै अर्जुन हूं और हम मिलकर कौरवों को पराजित करेंगे| तुम घबराओ नहीं|”

दुर्योधन के सैनिको ने देखा कि उत्तर कुमार अपने रथ पर सवार, उनकी ओर बढ़ते आ रहे थे| उन्हें आश्चर्य हुआ कि कुमार के साथ कौन था? उन्होंने देखा कि भीष्म तथा द्रोण के चरणों पर वेग से तीर आकर गिरे| साथ ही उन्होंने पराक्रमी धनुष की टंकार सुनी| भीष्म  तथा द्रोण बोल उठे, “यह अर्जुन है, यह अर्जुन है| देखो वह हमारा अभिनंदन कर रहा है|” कौरव सेना ने जब यह सुना कि अर्जुन युद्ध भूमि में उपस्थित है तो वह भयभीत होकर भागने लगी| परन्तु दुर्योधन प्रसन्न होकर चिल्लाया, “यह अर्जुन की मुर्खता थी कि वह यहाँ आया| वह मेरे द्वारा बिछाए जाल में फँस गया है| हमने पांडवों को पहचान लिया है| अब उन्हें पुनः बारह वर्षों के लिए वन जाना होगा| भीष्म और द्रोण ने एक साथ कहा, “नहीं| तेरहवाँ वर्ष समाप्त हो चूका है| अब तुम उन्हें आदर सहित बुलाकर उनका राज्य सौंप दो|”

वृहन्नला के साथ राजकुमार उत्तर कौरव सेना को पराजित करके जब लौटे तो राजा की खुशी का ठिकाना न रहा| राजकुमार ने अपने पिता को बताया कि वृहन्नला वास्तव में नृत्य शिक्षिका नहीं छदम वेश में अर्जुन थे| अन्य पांडवों ने भी अपनी वास्तविकता राजा के सामने प्रकट की|

युधिष्ठिर ने राजा विराट को अज्ञातवास के कठिन समय में अपनी सहायता करने के लिए धन्यवाद दिया| प्रसन्न होकर राजा विराट ने अपनी पुत्री उत्तरा का विवाह अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु से कर दिया|

दुर्योधन की योजना पुनः असफल हो गई| वह क्रोध से दांत पीसकर रह गया| उसने आगबबूला होते हुए कहा, “पांडवों की सदा विजय होती है और अर्जुन हर बार मुझे मूर्ख बनाता है|” और उसे स्मरण हो आया कि वह अर्जुम के हाथों इसके पूर्व भी सुभद्रा के विवाह को लेके अपमानित हो चूका था| अब अर्जुन और सुभद्रा के पुत्र अभिमन्यु का ही विवाह उत्तरा से हो रहा था|