सच्ची मदद
एक समय की बात है| प्रदीप खन्ना नाम के सज्जन दमे के मरीज़ थे| उन्हें अक्सर अपनी सांस रुकने पर कृतिम ऑक्सीजन–प्रणाली का सहारा लेना पड़ता था|
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वह अपनी सामयिक चिकित्सा के लिए सफरी ऑक्सीजन-पैक सदा अपने साथ रखते थे| वह एक बार कानपुर से अपनी 14 वर्षीय पुत्री और संबंधियों के साथ अवध एक्सप्रेस के एक प्रथम श्रेणी के डिब्बे में आगरा गये| प्रातः एक छोटे से स्टेशन पर चाय पीने के लिए यह सज्जन उतरे| अचानक गाड़ी चल पड़ी| बड़ी मुश्किल से यह सज्जन दौड़ते-दौड़ते सबसे आखिरी डिब्बे में चढ़े|
दौड़ने की वजह से उनकी सांस फूल गई| साथ लगा ऑक्सीजन- पैक भी खत्म हो गया| उनके रोग ने उनके रोग ने भयंकर रूप धारण कर लिया| जोर-जोर से वह चिल्लाने लगे, मदद के लिए पुकार करने लगे| इन सज्जन ने घबराहट के कारण अपना सिर डिब्बे की दीवार से मारा, फलतः सारा शरीर लहुलुहान हो गया| उन्हें किसी छूत की बीमारी का रोगी समझकर यात्री उनके पास से हट गए| आधे से अधिक डिब्बा खाली हो गया| उसी समय एक 16-17 साल का युवक आया| वह उन महाशय का सिर अपनी गोद में रखकर उनकी छाती की मालिश करने लगा| थोड़ा आराम मिलने पर उन रोगी सज्जन ने अपना नाम पता बताकर कहा- “पहले दर्जे के डिब्बे में मेरी बिटिया से ऑक्सीजन- ले आओ|”
उस युवक ने जंजीर खींची| परंतु वह खराब थी, उसने कोई काम नहीं किया| गाड़ी बड़ी तेजी से दौड़ती जा रही थी| उस सज्जन की हालत ऑक्सीजन- के बिना फिर बिगड़ रही थी कि जीवन से निराश होकर उन सज्जन ने चलती रेल से कूदने की जैसे ही कोशिश की, तब उसी युवक ने दौड़कर तुरंत उन्हें बचा लिया और लिटा दिया| लेटते ही वह सज्जन बेहोश हो गए| थोड़ी देर में सिगनल आने से गाड़ी धीमी हुई कि वह युवक चलती गाड़ी से कूद गया| उसकी संगिनी कोई महिला उसे पुकारती ही रह गई| थोड़ी देर में वह युवक उस यात्री का ऑक्सीजन- पैक का एक थैला ले आया| ऑक्सीजन- आदि से उपचार कर उन सज्जन ने स्वस्थ होते ही वह रूपयों वाला बैग उसने उन सज्जन को अच्छी तरह सम्भलवा दिया और कहा- “अपनी अमानत संभाल लीजिए|” वह सज्जन जब पूरी तरह स्वस्थ होकर आगरा फोर्ट स्टेशन उतरे, तब वह तब तक वह दयालु युवक चुपचाप अपने गंतव्य की ओर निकल गया था| इस कहानी से हमें शिक्षा लेनी चाहिए कि प्रत्येक प्राणी को हर समय एक दूसरे की मदद के लिए तत्पर रहना चाहिए|