संत की ऊंचाई
अबु उस्मान हैरी बड़े ऊंचे दर्जे के संत थे| उनका स्वभाव बहुत ही शांत था| वे सबके साथ प्रेम का व्यवहार करते थे, कभी कोई कड़वी बात कह देता था तो वे बुरा नहीं मानते थे| क्रोध तो उन्हें आता ही नहीं था|
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एक दिन वे अपने कुछ शिष्यों के साथ बाजार से गुजर रहे थे| बाजार में भीड़ नहीं थी| संयोग से जब वे किसी मकान के निकट पहुंचे तो ऊपर से किसी ने राख फेंकी| वह राख संत के सिर पर आकर गिरी|
यह देखकर शिष्य मारे गुस्से के लाल-पीले हो गए| वह उनके गुरु का अपमान था और इसे वे कैसे सहन कर सकते थे|
वे राख फेंकने वाले की खबर लेने के लिए तैयार हो गए|
पर संत ने उन्हें रोक दिया| उन्होंने मुस्कराकर कहा – “तुम लोग नाराज क्यों होते हो? जिस आदमी ने ऐसा किया है, उसका तुम्हें उल्टे अहसान मानना चाहिए, जरा सोचो तो जो सिर आग फेंकने लायक था, उस पर उसने राख ही फेंकी!”
गुरु की बात सुनकर और उनके चेहरे की मधुर मुस्कान देखकर शिष्यों का गुस्सा काफूर हो गया| उन्होंने समझा कि संत बनने के लिए आदमी में कितनी ऊंचाई आवश्यक होती है| उन्होंने ये समझ लिए कि क्रोध हमारा सबसे बड़ा बैरी होता है|