मखमली चप्पल
शहनाज बेगम अपने गरीब माता-पिता की आखिरी संतान थी | उसके छह भाई-बहन थे जो उससे बड़े थे | उसके माता-पिता ने उसके भाई-बहनों का विवाह कर दिया था |
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शहनाज का पिता अक्सर बीमार रहने लगा था | वह चाहता था कि उसके जीते जी शहनाज का विवाह हो जाए | हालांकि अभी उसके खेलने-कूदने की उम्र थी | वह अभी केवल चौदह बरस की थी, परंतु उसके माता-पिता को उसका विवाह करने की जल्दी थी |
तभी किसी ने एक धनी नि:संतान बूढ़े के बारे में शहनाज के पीता को बताया जो अक्सर बीमार रहता था, परंतु विवाह करना चाहता था | शहनाज के पिता ने सोचा कि बूढ़ा जैसा भी है, उसे से विवाह कर देना ठीक है | वह कम से कम अमीर तो बहुत है | वहां उसकी बेटी को खूब आराम-चैन मिलेगा |
शहनाज बेगम की उम्र पन्द्रह बरस पूरी होने से पहले बूढ़े व्यक्ति से विवाह हो गया | बूढ़ा अनीसुद्दीन शहनाज की हर इच्छा पूरी करता था | परंतु अपनी बीमारी के कारण उसे कहीं बाहर नहीं ले जा पाता था |
शहनाज को ऊंची एड़ी के सैंडल पहनना बहुत अच्छा लगता था | इस कारण वह जिधर से निकलती, उधर से ठक-ठक की आवाज सुनाई देती थी | अक्सर अनीसुद्दीन शहनाज के सैंडल की आवाज से ही अंदाज लगाता था कि वह किधर है और क्या कर रही है |
शहनाज अपने बीमार पति की हरदम सेवा करती रहती थी और समय से दवा-दूध आदि दिया करती थी | धीरे-धीरे बूढ़ा अनीस स्वस्थ होने लगा | पति-पत्नी अक्सर घर के नौकर-नौकरानियों की प्रशंसा करते रहते थे |
अनीस को नौकरों का आपस में अधिक हंसना-बोलना पसंद नहीं था | वह अपने नौकरों की अड़ोस-पड़ोस के नौकरों से दोस्ती भी पसंद नहीं करता था | उसी की आदत के मुताबिक सभी नौकर हरदम चुपचाप रहते थे और अपने-अपने काम में लगे रहे थे |
शहनाज हमेशा अपने बावर्ची की तारीफ़ किया करती थी | वह कहती थी कि वह सदैव समय पर स्वादिष्ट भोजन तैयार करता है | उसने आज तक उस जैसा बावर्ची नहीं देखा जो काम में खूब चुस्त हो और मालिकों का वफादार भी हो |
अब अक्सर बूढ़ा अनीस घर के बाहर सैर करने भी जाने लगा था | एक दिन उसने शहनाज से कहा – “आज तक तुम मेरी सेवा करती रही हो, कल मैं तुम्हें शहर की सबसे खूबसूरत इमारत की सैर करवाऊंगा | वह इमारत मेरे मित्र नवाब साहब की है |”
सुनकर शहनाज बहुत खुश हुई | अनीस अगले दिन घूमने की तैयारी में घर से बाहर कहीं चला गया |
लेकिन शहनाज की खुशी किस्मत को मंजूर नहीं थी | कुछ ही देर में अनीस के बेहोश होकर गिर जाने और मृत्यु हो जाने की खबर शहनाज को मिली | उसे अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ |
शहनाज हरदम चुप और उदास रहने लगी | उसने अपने जीवन में पति की सेवा और घर के काम-काज के अलावा कोई खुशी नहीं देखी थी | इस कारण वह दूसरा विवाह करने की सोच भी नहीं सकती थी |
इसी तरह महीनों और फिर तीस बरस गुजर गए | शहनाज के माता-पिता ने बहुत समझाया कि वह दूसरा विवाह कर ले, परंतु वह इसके लिए तैयार नहीं हुई |
वह अनीस की हवेली में चुपचाप उदास-सी अकेली रहती थी | घर के नौकर-नौकरानी उसका खूब ध्यान रखते थे | वह इस बात से ही खुश रहती थी कि उसके नौकर-नौकरानी उसका खूब ध्यान रखते हैं | बावर्ची समय पर स्वादिष्ट भोजन बनाता था |
इसी प्रकार उसकी जिंदगी गुजर रही थी | एक दिन घर में सीढ़ियां उतरते वक्त शहनाज का पैर अचानक मुड़ गया | वह सीढ़ियों से गिरते-गिरते बची | परंतु उसके पैर में मोच आ गई | उसका घर में चलना-फिरना भी बंद हो गया |
वैद्य जी को बुलाया गया | वैद्य ने सलाह दी कि जब तक शहनाज के पैर की मोच ठीक नहीं हो जाती, उसे पूरी तरह आराम करना चाहिए | उसे पांवों में ऊंची एड़ी के सैंडल बिक्लुल नहीं पहनने चाहिए और नरम मखमली चप्पलों को पैरों में पहनना चाहिए |
शहनाज हरदम बिस्तर पर लेटी रहती थी | उसका भोजन हर वक्त बिस्तर पर ही पहुंचा दिया जाता था | नौकरानियां पैर की मालिश व दवाइयां दे देती थीं | एक सप्ताह में उसका पैर कुछ ठीक होने लगा और वह थोड़ा बहुत चलने-फिरने लगी |
वैद्य जी की हिदायत के अनुसार वह नरम मखमली चप्पल पहनने लगी | इन चप्पलों के कारण उसकी ठक-ठक की आवाज बंद हो गई | एक दिन दोपहर को वह अचानक रसोई में गई तो देख कर आश्चर्य में पड़ गई कि उसका बावर्ची पड़ोस के नौकर से हंस-हंसकर बातें कर रहा था |
शहनाज थोड़ा छिपकर खड़ी हो गई | उसने देखा कि कुछ ही देर में पड़ोस का नौकर भगोना भर चीनी और घी उसके यहां से लेकर चला गया | शहनाज को रसोई की खाद्य सामग्री जल्दी खत्म होने का राज समझ में आने लगा |
उसे मन ही मन बावर्ची पर क्रोध आने लगा | वह सोचने लगी कि वह बेकार ही बावर्ची को इतना ईमानदार और वफ़ादार समझती रही |
वह बड़ी परेशान-सी रहने लगी | एक दिन शाम के वक्त शहनाज का मन हुआ कि वह आंगन में चहलकदमी करे और वह उठ कर आंगन में आ गई | तबी उसे एक कमरे में कुछ बातें करने की आहट महसूस हुई |
शहनाज ने छेद से झांककर कर देखा | अंदर का दृश्य देखकर उसे यूं लगा कि जैसे उसके दिल की धड़कन थम गई हो | उसे सहसा अपनी आंखों पर यकीन ही नहीं हुआ | कमरे के अंदर एक नौकर खूब सजा-संवरा कुर्सी पर बैठा था और एक नौकरानी शहनाज के कपड़े पहन कर नौकर के बालों में उंगलियां फिरा रही थी |
वह बड़ी मुश्किल से अपने बिस्तर तक पहुंची और अपने सैंडल पहन कर आंगन तक आई | उसने देखा सभी नौकर-चाकर अपने काम में लगे थे |
उसे यूं महसूस हुआ कि वह चक्कर खाकर गिर जाएगी | अब उसे यह समझ में आने लगा कि उन्हीं मखमली चप्पलों के कारण किसी को उसके आने की खबर नहीं लगती थी |
अब शहनाज को अपने नौकर-नौकरानियों और बावर्ची पर हर वक्त क्रोध आने लगा जिससे उसकी तबीयत खराब रहने लगी |
वह उन नौकरों की नौकरी से निकालकर उनकी नाराजगी से दुश्मनी मोल नहीं लेना चाहती थी | उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि इन बेईमान नौकर-नौकरानियों से कैसे निपटे ? नए नौकरों पर भी आसानी से भरोसा नहीं किया जा सकता था |
उसने एक योजना बनाई और अपनी हवेली बेच देने का फैसला किया | अगले दिन एक बड़े जमींदार को बुलाकर उसने हवेली बेच दी और वह शहर छोड़कर कहीं दूर गांव में चैन की जिन्दगी बिताने चली गई |