कृष्ण ने गाया तो नाम पड़ा गीता
बडे़ होने पर कृष्ण ने कंस का वध किया, नाना उग्रसेन को गद्दी पर बैठाया, देवकी के मृत पुत्रों को लेकर आए और माता-पिता को कारागार से मुक्ति दिलाई। कन्हैया के मित्र तो गोकुल के सभी बालक थे, लेकिन सुदामा उनके कृपापात्र रहे। अकिंचन सुदामा को वैभवशाली बनाने में दामोदर ने कोई कसर बाकी नहीं रखी। श्रीकृष्ण के जीवन में राधा प्रेम की मूर्ति बनकर आईं। जिस प्रेम को कोई नाप नहीं सका, उसकी आधारशिला राधा ने ही रखी थी।
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कृष्ण किशोर वय के हो गए तो महाभारत युद्ध की छाया पड़ने लगी थी। महाभारत में मुख्य आख्यान पांडवों का है, जिसमें हर पल कृष्ण उनके साथ हैं। महाभारत को अर्जुन व्यापार कहते हैं, तो कृष्ण ने इसे धर्मयुद्ध बताया। युद्ध के शुरू में ही श्रीकृष्ण ने कहा, जहां धर्म है, वहीं कृष्ण हैं और जहां कृष्ण हैं वहीं विजय है। महाभारत के छठे पर्व भीष्म पर्व में भगवत गीता है। भगवान ने इसे गाकर अर्जुन को सुनाया, इसलिए इसका नाम गीता पड़ा। श्रीकृष्ण ने कहा कि सज्जनों की रक्षा व दुष्टों के संहार के लिए मैं हर युग में अवतार लेता हूं। इसीलिए महाभारत को धर्मयुद्ध कहा जाता है।
द्रौपदी को युधिष्ठिर जुए में हार गए। भरी सभा में दुर्योधन और दु:शासन जब द्रौपदी का चीरहरण करने लगे तो जनार्दन ने रक्षा की। सुभद्रा का विवाह उसके मन के विरुद्ध होने के समाचार पर उसका अपहरण किया और अर्जुन से शादी कराई। जरासंध से युद्ध कर श्रीकृष्ण ने सोलह हजार कन्याओं को उसके चंगुल से छुड़ाया। महाभारत युद्ध के मैदान में मोहग्रस्त अर्जुन को गीता का उपदेश दिया। उपदेश देने के लिए शांत जगह चाहिए, लेकिन कृष्ण ने वहां ज्ञान दिया, जहां अट्ठारह अक्षौहिणी सेना के कोलाहल से किसी को कुछ सुनाई नहीं पड़ रहा था। अपने विराट रूप का दर्शन कराकर अर्जुन का मोहभंग किया।
आत्मा के अजर-अमर होने की बात बताई। जैसे उद्धव में ज्ञान था, लेकिन भक्ति नहीं, उसी प्रकार अर्जुन में भक्ति तो थी, लेकिन ज्ञान नहीं। गीता में उपदेश देकर उन्होंने अर्जुन से कहा कि मारे जाओगे तो स्वर्ग मिलेगा और जीत जाओगे तो पृथ्वी। इस तरह पार्थ को युद्ध के लिए तैयार किया। भगवान ने कहा कि जो मुझे जिस तरह याद करता है, मैं भी उसी प्रकार उसका भजन करता हूं।