जब साधु राजा बना
एक साधु था| चलते-चलते वह एक शहर के पास पहुँचा तो शहर का दरवाजा बन्द हो गया| रात हो गयी थी| वह साधु दरवाजे के बाहर ही सो गया| दैवयोग से उस दिन उस शहर के राजा का शरीर शान्त हो गया था|
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उसका कोई बेटा नहीं था| राज्य पाने के लिये कुटुम्बी लड़ने लगे| एक कहता कि मेरा हक लगता है, दूसरा कहता कि मेरा हक लगता है|
अन्त में सबने मिलकर यह निर्णय किया कि कल सुबह दरवाजा खोलने पर जो सबसे पहले भीतर आये, उसी को राज्य दे दिया जाय| ऐसा निर्णय होने से विवाद मिट गया|
सुबह होते ही शहर का दरवाजा खुला तो सबसे पहले वह साधु भीतर गया| भीतर जाते ही हथिनी ने चट सूँड़ से उठाकर बाबाजी को अपने ऊपर चढ़ा लिया| लोग जय-जयकार करते हुए बाबाजी को दरबार में ले गये| बाबाजी ने पूछा कि ‘यह क्या तमाशा है भाई?’ उन्होंने बाबाजी से कहा कि ‘महाराज! हमने विचार कर लिया है कि शहर में जो सबसे पहले आ जाय, उसको राज्य दे देना है| सबसे पहले आप आये, इसलिये हमने आपको यहाँ का राजा बनाया है|’ बाबाजी ने कहा कि अच्छी बात है!’ बाबाजी ने नहा-धोकर राजा की पोशाक पहन ली और आज्ञा दी कि एक बक्सा लाओ! जब बक्सा आया तो बाबाजी ने अपने पहले के कपड़े, तूँबी, खडाऊं आदि रखकर ताला लगा दिया और चाबी अपने पास में रख ली| अब बाबाजी बढ़िया रीति से राज्य करने लगे|
बाबाजी में न तो आपनो कोई कामना थी, न कोई चिन्ता थी और न उनको कोई भोग ही भोगना था| उन्होंने भगवान् का काम समझकर खूब बढ़िया रीति से राज्य किया| फलस्वरूप राज्य की बहुत उन्नति हो गयी| आमदनी बहुत ज्यादा हो गयी| राज्य का खजाना भर गया| प्रजा सुखी हो गयी| राज्य की समृद्धि को देखकर पड़ोस के एक राजा ने विचार किया कि बाबाजी राज्य तो करना जानते हैं, पर लड़ाई करना नहीं जानते! उसने चढ़ाई कर दी| राज्य के सैनिकों ने बाबाजी को समाचार दिया कि अमुक राजा ने चढ़ाई कर दी है| बाबाजी बोले कि ‘करने दो’ अपने लड़ाई नहीं करनी है|’ थोड़ी देर में समाचार आया कि शत्रु की सेना नजदीक आ रही है| बाबाजी बोले कि ‘आने दो’| फिर समाचार आया कि शत्रु की सेना पास में आ गयी है तो बाबाजी ने आदमी भेजा कि आप यहाँ क्यों आये हैं? पड़ोसी राजा ने समाचार भेजा कि हम यह राज्य लेने आये हैं| बाबाजी ने कहा कि राज्य पाने के लिए लड़ने की जरूरत नहीं हैं| बाबाजी ने आज्ञा दी कि मेरा बक्सा लाओ| बक्सा मँगाकर उन्होंने उसको खोला और अपने पहले के कपड़े पहनकर हाथ में तूँबी ले ली| बाबाजी ने पड़ोसी राजा से कहा कि इतने दिन मैंने रोटी खायी, अब आप खाओ! मैं तो इसलिये बैठा था कि राज्य सँभालने वाला कोई नहीं था| अब आप आ गये तो इसको सँभालो| व्यर्थ में लड़ाई करके मनुष्यों को क्यों मारें?
इस कहनी का तात्पर्य यह नहीं है कि शत्रु की सेना आये तो उसको राज्य दे दो, प्रत्युत यह तात्पर्य है कि बाबाजी की तरह जो काम सामने आ जाय, उसको भगवान् का काम समझकर निष्काम भाव से बढ़िया रीति से करो, अपना कोई आग्रह मत रखो|