हरिश्चंद्र ने मांगा श्मशान-कर
रानी अपने पुत्र को बांहों में उठाकर श्मशान में पहुंची| वंहा पहुंचकर उसके सामने यह समस्या पैदा हो गई कि वह अपने पुत्र का शवदाह कैसे करे| विवश होकर उसने अपनी आधी साड़ी फाड़ी और उसी में अपने पुत्र का शव लपेटकर चिता की ओर बढ़ी|
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लेकिन तभी चाण्डाल के सेवक बने हरिश्चंद्र ने उसे रोका और कहा, “देवी, बिना श्मशान का कर चुकाए तुम इस मुर्दे को यंहा नहीं जला सकतीं|”
अपनी पति का स्वर पहचानकर रानी ने सिर उठाया| हरिश्चंद्र ने भी उसे तत्काल पहचान लिया| पुत्र के शव पर निगाह डालते ही दुःख से उनका हृदय फट पड़ा|
“देखते क्या हो गया स्वामी? यह आप का ही पुत्र है|” रानी ने रोते हुए सारी घटना सुना दी|