हमारे क्लेश और विकारों को दूर करते हैं हनुमान
आप किसी भी क्षेत्र में हों, योग्यता के तीन प्रमाण माने जाते हैं। निरंतरता, विश्वसनीयता और समर्पण। कार्य के प्रति प्रयासों में जो निरंतरता होती है, उससे आलस्य दूर होता है। हमारी कार्यशैली से बासी और उबाऊपन चला जाता है।
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आज के समय में यह बहुत बड़ी उपलब्धि होगी कि आप किसी की नजर में विश्वसनीय माने जा रहे हैं। ईमानदारी का प्रकट रूप है समर्पण। जो भी करें, जमकर करें। हनुमानजी में ये तीनों गुण थे। उनसे बल, बुद्धि और विद्या की मांग की जाती है। हनुमानचालीसा के आरंभ के दूसरे दोहे में लिखा गया है ‘बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार, बल बुद्धि विद्या देहु मोही, हरहु कलेस विकार’ अर्थात -मैं अपने को बुद्धिहीन जानकर आपका स्मरण कर रहा हूं, आप मुझे बल, बुद्धि और विद्या प्रदान करके मेरे सभी कष्टों और दोषों को दूर करने की कृपा करें। इसके पीछे सूत्र यह है कि बुद्धि विश्वसनीय हो, बल में समर्पण भाव रहे और विद्या निरंतर यानी सक्रिय रहे, जड़ न हो जाए।
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