दृढ़ उद्देश्य से लाभ
एक भक्त इमली के वृक्ष के नीचे बैठे कर भगवान् का भजन कर रहा था| एक दिन वहाँ नारद जी महाराज आ गये| उस भक्त ने नारद जी कहा कि आप इतनी कृपा करें की जब भगवान् के पास जाएं तब उनसे पूछ ले कि वे मुझे कब मिलेंगे? नारद जी भगवान् के पास गये और पूछा कि अमुक स्थान पर एक भक्त इमली के वृक्ष के नीचे बैठा है और भजन कर रहा है, उसको आप कब मिलेंगे?
“दृढ़ उद्देश्य से लाभ” सुनने के लिए Play Button क्लिक करें | Listen Audio
भगवान् ने कहा कि उस वृक्ष के जितने पत्ते हैं, उतने जन्मों के बाद मिलूँगा| ऐसा सुनकर नारद जी उदास हो गये| वे उस भक्त के पास गये, पर उससे कुछ कहा नही|
भक्त ने प्रार्थना की कि भगवान् ने क्या कहा है, कह तो दो| नारद जी बोले कि तुम सुनोगे तो हताश हो जाओगे| जब भक्त ने आग्रह किया, तब नारद जी बोले कि इस वृक्ष के जितने पत्ते हैं, उतने जन्मों के बाद भगवान् की प्राप्ति होगी| भक्त ने उत्सुकता से पूछा की क्या भगवान् ने ऐसा खुद कहा है| नारद जी ने कहा हाँ, खुद भगवान् ने कहा है| यह सुनकर भक्त खुशी से नाचने लगा कि भगवान् मेरे को मिलेंगे, मिलेंगे, मिलेंगे!! क्योंकि भगवान् ने वचन झूठे नहीं हो सकते| इतने में ही भगवान् वहाँ प्रकट हो गये! नारद जी ने देखा तो उनको बड़ा आश्चर्य हुआ| वे भगवान् से बोले कि महाराज! अगर यही बात थी तो मेरी फजीतीं क्यों करायी? आपको जल्दी मिलना था तो मिल जाते| मेरे से तो कहा कि इतने जन्मों के बाद मिलूँगा और आप अभी आ गये! भगवान ने कहा की नारद! जब तुमने इसके विषय में पूछा था, तब यह जिस चाल से भजन कर रहा था, उस चाल से तो इसको उतने ही जन्म लगते| परन्तु अब तो इसकी चल ही बदल गयी| यह तो ‘भगवान् मेरे को मिलेंगे’-इतनी बात पर ही मस्ती से नाचने लग गया! इसलिए मुझे अभी ही आना पड़ा| कारण कि उद्देश्य की सिद्धि में जो अटल विश्वास, अनन्यता, दृढ़ता, उत्साह होता है, उसके भजन तेज हो जाता है|
एक संत थे| वे एक जाट के घर गये| जाट ने उनकी बड़ी सेवा की| संत ने उससे कहा कि रोजाना नाम जप करने का कुछ नियम ले लो| जाट ने कहा कि बाबा, हमारे को वक्त नहीं मिलता| संत ने कहा कि अच्छा, रोजाना एक बार ठाकुर जी की मुर्तिका दर्शन कर आया करो| जाट ने कहा मै तो खेत में रहता हूँ, ठाकुर जी की मूर्ति गांव के मन्दिर के मन्दिर में है, कैसे करूँ? संत ने उसको कई साधन बताये कि वह कुछ-न-कुछ नियम ले ले, पर वह यही कहता रहा कि मेरे से यह बनेगा नहीं| मै खेत में काम करूँ या माला लेकर जप करूँ! इतना समय मेरे पास कहाँ है? बाल -बच्चों का पालन है; तुम्हारे जैसे बाबा जी थोड़े ही हूँ कि बैठकर भजन करूँ| संत ने कहा कि अच्छा तू क्या कर सकता है? जाट बोला कि हमारे पड़ोस में एक कुम्हार रहता है, उसके साथ मेरी मित्रता है; खेत भी पास-पास में है और घर भी पास-पास में है; रोजाना नियम से एक बार उसको देख लिया करूँगा|संत ने कहा कि ठीक है, उसको देखे बिना मत भोजन मत करना| जाट ने स्वीकार कर लिया| जब उसकी स्त्री कहती कि रोटी तैयार हो गयी, भोजन कर लो तो वह चट बाड़पर चढ़कर कुम्हार को देख लेता और भोजन कर लेता| इस नियम में वह पक्का रहा|
एक दिन जाट को खेत में जल्दी जाना था, इसलिए भोजन जल्दी तैयार कर लिया| उसने बाड़पर चढ़कर देखा तो कुम्हार दिखा नहीं| पूछने पर पता लगा कि वह तो मिट्टी खोदने बाहर गया है|जाट बोला कि कहाँ मर गया, कम-से-कम देख तो लेता| अब जाट उसको देखने के लिए तेजी से भागा| उधर कुम्हार को मिट्टी खोदते-खोदते एक हाँड़ी मिल गयी, जिसमें तरह-तरह के रत्न, अशर्फियाँ भारी हुई थीं| उसके मन में आया कि कोई देख लेगा तो मुश्किल हो जायेगी! अतः वह देखने के लिए ऊपर चढ़ा तो सामने वह जाट आ गया! कुम्हार को देखते ही जाट वापस भागा तो कुम्हार ने समझा कि उसने वह हाँड़ी देख ली और अब वह आफत पैदा करेगा| कुम्हार ने आवाज लगायी कि अरे, जा मत, जा मत! जाट बोला कि बस देख लिया, देख लिया| कुम्हार बोला कि अच्छा देख लिया तो आधा तेरा, आधा मेरा, पर किसी से कहना मत! जाट वापस आया तो उसको धन मिल गया| उसके मन में विचार आया कि संत से अपना मनचाहा नियम लेने में इतनी बात है, अगर सदा उनकी आज्ञा का पालन करूँ तो कितना लाभ है! ऐसा विचार करके वह जाट और उसका मित्र कुम्हार-दोनों ही भगवान् के भक्त बन गये|
तात्पर्य यह है कि हम दृढ़ता से अपना एक उद्देश्य बना ले कि चाहे जो हो जाय, हमें तो भगवान् की तरफ चलना है, उद्देश्य को पहचान लें| कारण कि उद्देश्य पहले बना है, मनुष्य जन्म पीछे मिला है| मनुष्य जन्म केवल भगवत्प्राप्ति के लिए ही मिला है- इस उद्देश्य को पहचान लें, संदेह रहित मान ले तो फिर भजन अपने-आप होगा|