धूर्त महाजन (बादशाह अकबर और बीरबल)
फौजिया की काफी उम्र हो गई थी और वह इस दुनिया में अकेली थी| उम्र के इस दौर में पहुंचकर उसे हज पर जाने की इच्छा हुई| अत: उसने अपने सभी गहने हजार मोहरों के दाम बेच दिए| ढाई सौ मोहरें उसने खर्च के लिए रखकर शेष साढ़े सात सौ मोहरों को एक थैली में अच्छी तरह से बन्द कर दिया तथा उसे लाख से सील कर दिया|
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वह उस थैली को लेकर अपने पड़ोस में रहने वाले महाजन के पास गई और बोली – “लाला जी, मैं तो हज यात्रा पर जा रही हूं, किन्तु मेरी जिंदगी भर की कमाई साढ़े सात सौ मोहरें इस थैली में हैं और यह मैं आपके पास अमानत के तौर पर रखना चाहती हूं| हज से वापस लौटकर मैं इसे ले लूंगी…यदि न लौट सकी तो यह मोहरें आप ही को हो जाएंगी|”
महाजन ने स्वीकृति दे दी और मोहरें फौजिया से लेकर तिजोरी में रख दीं| फौजिया भी निश्चिंत होकर हज यात्रा पर चली गई|
इसी तरह दो वर्ष बीत गए और फौजिया न लौटी तो महाजन की धूर्तता जाग उठी| उसे लगा, शायद कहीं मर-मरा गई है और अब नहीं लौटेगी, अत: उसने वे मोहरें हड़प लीं|
किन्तु इसके कुछ ही समय बाद फौजिया लौट आई और उसने महाजन के पास जाकर अपनी मोहरों की थैली मांगी| महाजन ने तुरन्त तिजोरी से थैली निकालकर उसे दे दी| थैली वैसे ही बन्द थी और उस पर लाख की सील लगी हुई थी…जैसी वह हज यात्रा जाने से पूर्व लगा गई थी|
घर पहुंचकर जब उसने थैली खोली तो दंग रह गई| थैली मैं तो लोहे और तांबे के सीक्के भरे पड़े थे| वह तुरन्त महाजन के पास गई और उससे इस बारे में बात की तो वह भड़क कर बोला -“मुझे क्या पता कि इस थैली में क्या था, जैसी थैली तुम दे गई थीं, वैसी ही मैंने वापस कर दी|”
फौजिया समझ गई कि महाजन की नीयत बिगड़ गई है, अत: उसने बहस करना उचित नहीं समझा और सीधा बादशाह अकबर के दरबार में चली गई और न्याय की गुहार की|
बादशाह अकबर को मामला बहुत नाजुक लगा| सबूत फौजिया के हक में न थे, अत: उन्होंने यह मामला बीरबल को सौंप दिया|
बीरबल ने फौजिया से पूछा-“उस थैली में मोहरें थीं, इसका कोई सबूत है तुम्हारे पास ?”
“हुजूर, मैंने अपनी सभी मोहरों में एक छोटा-सा चिह्न लगा दिया था|” फौजिया ने गांठ में से अपनी बची हुई कुछ मोहरों में से एक निकालकर बीरबल को दिखाते हुए कहा – “हुजूर, यह देखिए यह चिह्न इतना बारिक है कि गौर से देखने पर ही पता चलता है और यह चिह्न मेरी सभी मोहरों पर लगा हुआ था|”
“ठीक है, तुम्हें इसाफ मिलेगा|” बीरबल ने कहा और फौजिया से वह थैली जांच के लिए लेकर उसे वापस भेज दिया|
बीरबल ने उसी तरह की कुछ और थैलियां मंगाकर सभी में एक छेद कर दिया और एक-एक थैली नगर के प्रसिद्ध रफूगरों के यहां रफू करवाने भेज दी| जब सभी थैलियां रफू होकर वापस आईं तो उनमें से एक थैली ऐसी भी थी कि यह भी नहीं पता चल पा रहा था कि उसमें कोई छेद था| बीरबल ने उस रफूगर को बुलवा लिया और उससे पूछताछ की| पहले तो रफूगर टालता रहा किंतु जब बीरबल ने धमकी भरे अंदाज में पूछा तो उसने महाजन की थैली में रफू करना स्वीकार कर लिया|
“जब महाजन ने तुमसे थैली रफू करवाई तो उसमें क्या था?”बीरबल ने पूछा|
“हुजूर! उसमें कुछ लोहे और तांबे के सिक्के थे|”
“इस काम के लिए तुम्हें कुछ मजदूरी भी मिली होगी?”
“जी हुजूर, महाजन ने पूरी पांच मोहरें दी थीं|” रफूगर ने जवाब दिया|
“वे मोहरें कहां हैं?” बीरबल ने पुन: पूछा|
“हुजूर तीन तो खर्च हो गईं, पर दो अब भी पड़ी हैं|”
“ठीक है, वे मोहरें लेकर तुरन्त दरबार में आओ|” बीरबल ने उसे आदेश दिया|
रफूगर दोनों मोहरें लेकर दरबार में उपस्थित हो गया| बीरबल ने दोनों मोहरों को गौर से देखा… दोनों में फौजिया द्वारा लगाया गया चिह्न मौजूद था, बीरबल ने अगले दिन दरबार में फौजिया, महाजन और रफूगर तीनों को उपस्थित होने का आदेश दिया|
अगले दिन प्रात: जब तीनों दरबार में पहुंचे तो रफूगर को वहां देखकर महाजन घबरा गया|उसकी यह घबराहट बीरबल ने भांप ली|
बीरबल ने रफूगर से पूछा – “क्या इसी महाजन ने तुमसे यह थैली रफू कराई थी?”
“जी हां हुजूर….|” रफूगर ने कहा|
“तुम बताओ महाजन, तुम क्या कहना चाहते हो?” बीरबल ने पूछा|
महाजन ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया| फौजिया को उसकी मोहरें वापस मिल गईं| सभी ने बीरबल के न्याय की प्रशंसा की|