Homeशिक्षाप्रद कथाएँदक्षिणा के भार से मुक्ति

दक्षिणा के भार से मुक्ति

दक्षिणा के भार से मुक्ति

उसी समय क्रोध में भरे हुए विश्वामित्र वंहा आ पहुहें और बोले, “क्या बात है हरिश्चंद्र! क्या तुम मेरी दक्षिणा देना नहीं चाहते?”

“दक्षिणा के भार से मुक्ति” सुनने के लिए Play Button क्लिक करें | Listen Audio

हरिश्चंद्र ने हाथ जोड़कर कहा, “भगवन! मैंने आपकी दक्षिणा के लिए ही अपने आपको चाण्डाल के हाथों बेच दिया| यह लीजिये एक भार सोना… मैं सूर्यवंशी हूं| मै अपने प्राण दे सकता हूं, पर अपना वचन नहीं तोड़ सकता|”

विश्वामित्र न एक भार सोने की पोटली उठा ली और घूमकर वापस चल पड़े| चाण्डाल राजा को अपने साथ लेकर वंहा गया, जहां चिताएं जल रही थीं| उसने कहा, “बिना कफन लिए किसी भी मुर्दे को स्वीकार नहीं करना| चाहे तुम्हारे पुत्र का ही शव क्यों न आ जाए|”

“ऐसा ही होगा स्वामी!” राजा ने चाण्डाल को आश्वस्त किया|