ब्राम्हण से भेंट
सूअर के अन्तर्धान होते ही राजा हरिश्चंद्र सोच में पड़ गए, ‘यह कैसी माया है? मनुष्य की बोली बोलने वाला वह सूअर कौन था?’
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तभी एक ब्राम्हण वंहा आया और राजा को चिंतित अवस्था में खड़े देखकर पूछने लगा, “आप कौन से देश के राजा हैं श्रीमान? इस भयानक वन में आप क्या कर रहे हैं?”
“हे विप्रवर! आपको देखकर मुझे बड़ा संतोष मिला| मै अयोध्या का राजा हरिश्चंद्र हूं| एक सूअर का पीछा करते-करते यंहा वन में आया था और अब मार्ग भटक गया हूं| मेरे अंगरक्षक भी पीछे छुट गए हैं|”
“आप चिंता न करे राजन!” ब्राम्हण ने कहा, “यहां से थोड़ी दूर मेरा आश्रम है| आज मेरे पुत्र का विवाह है| आप पास की नदी में स्नान करके थकान मिटा लें और मेरे आश्रम पर चलकर थोड़ा जलपान करके आराम कर लें| फिर मै आपको वन से बहार ले चलूँगा|”
“शुभ संदेश दिया आपने| मैं आपके साथ चलता हूं|” राजा ने नदी में स्नान किया और ब्राम्हण के साथ चल पड़े| वे नहीं जानते थे की वह नदी मायावी| उसमे स्नान करके वे ब्राम्हण रूपधारी विश्वामित्र के अधीन हो गए|