बकासुर
चलते-चलते पांडवों एकचक्र नामक नगर पहुंचे| वहां एक गरीब ब्राह्मण के घर उन्हें शरण मिली| धीरे-धीरे दिन गुजर रहे थे| एक दिन कुंती ने ब्राह्मण और ब्राह्मणी को विलाप करते देखा और पूछा, “आप इतने दुखी क्यों हैं?” ब्राह्मणी ने उत्तर दिया, “इस नगरी के पास बका नामक एक राक्षस रहता है|
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नगरवासियों को प्रतिदिन उसके भोजन के लिए एक गाड़ीभर सामान और साथ में एक मनुष्य भेजना पड़ता है, अन्यथा वह क्रोधित होकर कई मनुष्यों को मार डालता है| आज हमारी बारी है| मुझे अपने परिवार का कोई सदस्य उसके भोजन के लिए भेजना है|” कुंती ने ब्राह्मण की समस्या अपने पुत्रों ओ बताई| सभी ने ब्राह्मण और एकचक्र-वासियों की सहायता करने का निश्चय किया| यह काम भीम को सौंपा गया|
भीम ने ब्राह्मण से कहा, “आज गाड़ी के साथ मै जाऊंगा परन्तु तुम्हें यह बात गुप्त रखनी होगी|” ब्राह्मण ने तुरन्त अपनी असहमति प्रकट की| वह कुंती से बोला, “भला मैं अपने घर में रह रहे अतिथियों के साथ यह व्यवहार कैसे कर सकता हूं! हमने निश्चय कर लिया है उसके स्थान पर बकासुर के भोजन के लिए मेरा पुत्र जाएगा| आपका पुत्र भीम नहीं जा सकता|”
कुंती ने समझाया एक तो मेरे पांच पुत्र हैं, दूसरे भीम बहुत बलवान है| वह सकुशल लौट आएगा| आप चिंता न करें|
आँखों में अश्रुभर ब्राह्मण कुंती और भीम के प्रस्ताव से सहमत हो गया| भीम म्होजन से भरी गाड़ी खींचकर बकासुर के घर ले गया| उसने चिल्लाकर बकासुर को पुकारा और कहा, “मुझे बहुत भूख लगी है| इसके पूर्व कि मै सारा भोजन समाप्त कर दूँ, तुम आओ इसे खा लो|” यह तो युद्ध की ललकार थी| बकासुर शीघ्रता से बाहर आया| वह भीम को भोजन की एक-एक वस्तु खाते देख आश्चर्य-चकित रह गया|
आते ही उसने गर्जना की, “तुम कौन हो?” भीम उसकी उपेक्षा करते हुए खाना खाते रहे| क्रोधित होकर बकासुर ने एक वृक्ष उखाड़कर भीम पर फेंका, परन्तु भीम हँसते हुए खड़े रहे| बकासुर ने बार-बार भीम पर आक्रमण किया, पर भीम उसका हर वार बचा जाते| असफल होकर बकासुर भयंकर रूप धारण कर, मुंह फाड़े भीम की ओर बढ़ा| भीम ने भी एक वृक्ष उठाकर दे मारा, फिर भोजन के खाली बर्तन मारने लगा| अंत में भीम ने बकासुर को अपनी भुजाओं में दबोच लिया और उसे दोनों हाथों से उछाल, पत्थर पर पटक दिया| इस तरह से बकासुर का अंत हो गया|