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बैल की समझदारी

एक बैल था| जब वह बूढ़ा हो गया तो उसका मालिक उसे जंगल में छोड़ आया| बैल बूढ़ा ज़रूर था लेकिन था बहुत समझदार| जंगल में वह सबसे पहले अपने रहने-खाने का बंदोबस्त देखने लगा|

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जल्दी ही उसे एक खाली गुफ़ा मिल गई| गुफ़ा के पास ही एक तालाब था और वहाँ काफ़ी सारी घास तथा जंगली पौधे भी थे| बैल को वह स्थान अपने लिए सुरक्षित लगा| रहने के साथ-साथ वहाँ भोजन-पानी की भी पूरी व्यवस्था थी| बैल आराम से वहाँ अपनी जिंदगी बिताने लगा|

सारा दिन खाते-पीते और सुस्ताते रहने के कारण बैल अच्छा-खासा तंदुरुस्त हो गया था| एक दिन वह गुफ़ा के बाहर बैठा था कि उसे एक शेर अपनी तरफ़ आता दिखाई दिया| बैल घबराया नही| उसने बुद्धि से काम लिया| जैसे ही शेर कुछ नज़दीक आया तो वह ज़ोर से बोला, ‘अरी भागवान! तैयार रहो, आज हमारे बच्चों के लिए बहुत ही अच्छा भोजन मिला है| एक शेर इसी तरफ़ आ रहा है| शोर मत मचाना…चुप रहना, नही तो वह भाग जाएगा| जैसे ही वह मेरे पास आएगा मैं उसे अपने सींगों से मार डालूँगा|’

बैल की बात सुनकर शेर डर गया और वहाँ से भाग खड़ा हुआ| शेर ने समझा कि वह उससे भी खतरनाक जानवर है|

शेर को इस तरह बदहवास भागते देख सियार से रहा न गया और उसने शेर को रोक कर इस तरह भागने का कारण पूछा|

शेर ने सियार को आपबीती सुना दी| सुनकर सियार हँस पड़ा| शेर ने अचरज से पूछा, ‘क्या बात है हँस क्यों रहे हो?’

‘महाराज! आपकी मूर्खता पर हँस रहा हूँ|’

‘क्या मतलब!’

‘महाराज! जिससे आप डर रहे है वह कोई खतरनाक जानवर नही बल्कि बैल है…आपका शिकार| आप चलिए मेरे साथ, मैं बताता हूँ वह कौन है|’ सियार ने कहा|

किन्तु शेर के दिल में तो डर बैठ गया था| वह सियार की बात मानने को तैयार ही नही हुआ|

तब सियार ने शेर को समझाते हुए कहा, ‘महाराज आप डरे नही| आप अपनी पूँछ मेरी पूँछ से बाँध ले| मैं आगे रहूँगा, यदि वह जानवर कोई नुकसान पहुँचाएगा तो पहले मैं झेलूँगा|’

अपने बचाव की शर्त पर सियार के साथ शेर चलने को तैयार हो गया| शेर ने अपनी पूँछ सियार की पूँछ से बाँध दी और सियार के पीछे-पीछे चलने लगा|

जब बैल ने सियार और शेर को एकसाथ आते देखा तो समझ गया कि धूर्त सियार ने शेर को सब कुछ बता दिया है| लेकिन बैल फिर भी नही घबराया और ज़ोर से बोला, ‘ओ सियार! मैंने तो तुझे दो शेर लाने को कहा था और तू एक ही लेकर आया है| इससे तो बच्चों का पेट भी नही भरेगा|’

बैल की यह बात सुनते ही शेर तेजी से उल्टे पाँव दौड़ पड़ा| सियार की पूँछ बँधी होने के कारण वह भी शेर के पीछे घिसटता रहा|

इस तरह बैल ने समझदारी से अपनी जान बचा ली|


कथा-सार 

यूँ तो अपने से बलशाली से बैर लेना कोई समझदारी की बात नही| परंतु जब जान आ बने तो बुद्धि चातुर्य से काम लेना चाहिए| जैसे बैल ने अपनी चतुराई से पहले शेर को व बाद में शेर-सियार दोनों को वहाँ से भगाकर अपने प्राणों की रक्षा की|

एक आदमी