अदम्य इच्छाशक्ति
स्वामी रामतीर्थ का दैनिक भोजन जमुनोत्री की गुफा में निवास करते हुए चौबीस घंटो में एक बार आलू और मिर्च का आहार था| उन्हें उस भोजन से आजीर्ण की शिकायत हो गई|
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उन्होंने अस्वस्थता की हालत में चौथे दिन तप्त स्त्रोत में स्नान किया और कौपीन पहनकर वह नंगे बदन सुमेरू पर्वत (सोने और रत्नों से भरी हिमालय की चोटी) की ओर चल पड़े| उनके पास समय दो वस्त्र थे, न जूते थे, और न छाता| हाँ, उनके साथ गर्म वस्त्र पहने पाँच पहाड़ी अवश्य थे|
इन यात्रियों को तीन-चार बार जमुना पार करनी पड़ी| आगे जमुना घाटी का रास्ता 45 फुट ऊँची और डेढ़ फलांग लंबी हिमशिला से ढका हुआ था| जमुना के दोनों किनारों पर दो पहाड़ियाँ सीधी दीवारों कि तरह खड़ी थी| साहसी नग्न साधु रामतीर्थ के सभी रास्ते अवरुद्ध थे| सन्यासी रामतीर्थ को साथ के पहाड़ियों ने सलाह दी- “लौट चलो, आगे सब रास्ते बंद हैं|” रामतीर्थ ने जवाब दिया- “हिम्मती साहसी व्यक्ति को कोई रोक नहीं सकता|” वह यह कहते ही पश्चिमी पर्वत की सीधी दीवार पर चढ़ने लगे| उस पहाड़ी चट्टान पर कहीं पैर टिकाने के लिए कोई ठिकाना न था; केवल गुलाबों की कंटीली झाड़ियाँ थी, कहीं पहाड़ की कोमल घास छाई थी| उन्हें ही हल्के हाथों से पकड़कर पैर टेकते हुए स्वामी रामतीर्थ साथियों के साथ सुमेरू की चोटी की ओर बढ़ चले| कई बार ऐसा लगा कि कुछ इंच दूर से ही मौत गुजर गई| यदि थोड़ा भी पैर फिसले तो नीचे वर्ष की चट्टानों से भरी जमुना में मृत्यु अनिवार्य लगती थी| उस समय नीचे से बर्फी की ठंडी कांपने वाली हवा थपेड़े दे रही थी| इस तरह पौन घंटे वह अपने साथियों के साथ मृत्यु के जबड़ों से जूझते रहे| बड़ी विचित्र परिस्थिति थी| एक ओर से मृत्यु हुई विभीषिका के साथ थपेड़े मार रही थी तो दूसरी ओर से सुमेरू पर्वत के शिखर से मन और शरीर को प्रसन्न करने वाली मंद संगीत-ध्वनि सुनाई पड़ रही थी| कठिन परिश्रम बाधाओं से निरंतर जूझने के बाद वह उस हिमालय के शिखर पर पहुँचे| वहाँ अपूर्व दृश्य था| जमुना कहीं दूर तिरोहित हो गई थी| कहीं कोई रास्ता, नहीं पैरों का कोई निशान नहीं था| एक घने जंगल के बाद रामतीर्थ सन्यासी का दल एक खुले मैदान में पहुँचा| सारा वातावरण एक अद्वितीय सुगंध और दिव्य ज्योति से परिपूर्ण हो गया| यात्री दल 80 डिग्री कोण की सीधी फिसलनी चढ़ाई पार कर स्वर्ग समान वातावरण के पुष्पों और वनस्पतियों से पूर्ण प्रदेशों में पहुँच गया था| संभवतः वही सुमेरू का क्षेत्र था|
सचमुच कठिन बाधाओं और विपत्तियों को पार करके को पार करके ही स्वामी रामतीर्थ प्रकृति और भगवान् की गोद में पहुँच सके थे| सच में संघर्ष के बिना जीवन का सत्य नहीं मिलता|