अच्छी लड़की
एक समय की घटना है|
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उस वर्ष देश के बड़े हिस्से में सूखा पड़ा| कही वर्षा नहीं हुई| अनाज पैदा होने से सब जगह अकाल पड़ गया| जनता भूख से त्राहि-त्राहि करने लगी| एक नगर में एक सेठ था| वह बहुत दयालु था| उसने मुनादी कर दी की नगर भर के बच्चों को वह रोज रोटी बाटेगा| रोटी बाँटते समय बच्चे पंकित तोड़कर पहले और अधिक रोटी लेने की कोशिश करते थे| उसी नगर में एक बहुत निर्धन नागरिक की एक कन्या थी लता| वह भी दूसरे बच्चों के साथ पंक्ति में खड़ी होती; परंतु न वह कभी पंक्ति तोड़ती थी और न कभी झपटती थी| अक्सर जब सब बच्चे रोटी ले लेते थे, तब आख़िर में वह अकेली रह जाती थी| नगर सेठ इस बच्ची के धीरज से प्रसन्न था| सबसे अंत में वह स्वयं उस बच्ची लता को रोटी देता था|
दूसरे दिनों की तरह उस दिन भी लता को अंत में रोटी मिली| उसने रोज की तरह वह रोटी माँ को दे दी| माँ ने जब रोटी तोड़ी तब उसमें से एक सोने की अशर्फी गिर पड़ी| दोनों माँ-बेटी अचंभे में पड़ गई| माँ का आदेश होते ही लता वह अशर्फी लेकर सेठ के पास गई; बोली- “नगर सेठ, आपके द्वारा दी गई रोटी से यह सोने की अशर्फी निकली है यह सोने की अशर्फी आपकी है, इसे वापस ले लीजिए|”
नगर सेठ ने उस बच्ची की पीठ थपथपाई बोला- बिटिया, यह अशर्फी तुम्हारे धीरज का इनाम है तुमने भूख के बावजूद कभी पंक्ति नहीं तोड़ी, कभी लड़ी-झगड़ी नहीं| तुम एक बहुत अच्छी लड़की हो भगवान् जीवन में तुम्हारी उन्नति करेंगे|” इस कहानी से हमें सीख लेनी चाहिए कि हर मनुष्य की अच्छाई सामने आकर रहती है|