दुष्ट पत्नी बनी हिरणी (अलिफ लैला) – शिक्षाप्रद कथा
“हे दैत्यराज! जिस हिरणी को आप मेरे साथ देख रहे हैं, यह वास्तव में मेरी पत्नी है| जब यह बारह वर्ष की थी, तभी इसके साथ मेरा निकाह हुआ था| यह मेरे प्रत्येक आदेश का मन से पालन करती थी, मैं भी इससे बेहद प्यार करता था| मगर काफी लम्बे इंतजार के बाद भी जब इससे मुझे कोई सन्तान नहीं मिली तो मैं चिंतित हो उठा कि मेरा वंश कैसे चलेगा? आखिर काफी सोच-विचार के बाद मैं एक दासी खरीद लाया|
कुछ समय बाद ही उस दासी से एक बेटा पैदा हुआ तो मेरी खुशी का ठिकाना न रहा| मेरी पत्नी तो दासी से वैसे ही जलती थी, मगर उसके द्वारा मेरे वारिस को जन्म देने के बाद तो इसकी जलन की सीमा ही न रही| मुझे अफसोस है कि इस बात का पता मुझे बहुत दिनों बाद चला|
संयोग से उन्हीं दिनों मुझे व्यापार के सिलसिले में विदेश जाना पड़ा| जाते समय मैंने अपनी पत्नी को सख्त हिदायत दी कि मेरे पीछे बच्चे और मां का पूरा-पूरा ख्याल रखना, उन्हें किसी किस्म की कोई तकलीफ न होने पाए| मैं एक साल के अंदर-अंदर लौट आऊंगा|
मगर! मेरी पत्नी को तो मेरे जाते ही खुलकर अपनी मरजी करने का मौका मिल गया| यह उन पर अत्याचार करती रही| मेरे पीछे इसने जादू-टोना भी सीख लिया| अपने उसी जादू-टोने के बल पर इस दुष्टा ने मेरे बच्चे और उसकी मां को गाय-बछड़ा बना दिया और उसे मेरे नौकर के सुपुर्द कर दिया कि ‘अपने घर ले जाकर दोनों को खिला-पिलाकर मोटा-ताजा कर दे|’
परदेश से वापस आकर मैंने अपनी पत्नी से अपने पुत्र और उसकी मां के बारे में पूछा| उसने कहा, “तुम्हारी दासी तो मर गई है और तुम्हारा बेटा करीब दो महीने पहले एक दिन खेलते-खेलते न जाने कहां चला गया| मैंने उसे बहुत खोजा, मगर पता ही नहीं चला कि वह कहां चला गया|”
मुझे अपनी दासी के मरने का बहुत दुख हुआ मगर करता क्या? आखिरकार सब्र करने बैठने पड़ा, किंतु मुझे आशा थी कि कभी-न-कभी पुत्र से मेरी भेंट अवश्य हो जाएगी|
आठ महीने बाद ईद का त्योहार आया| मेरी इच्छा हुई कि इस त्योहार पर मैं किसी पशु की कुरबानी दूं| मैंने अपने ग्वाले को बुलाकर कहा कि क़ुरबानी के लिए एक मोटी-ताजी गाय ले आ| संयोग से वह मेरी दासी को ही ले आया, जो जादू के जोर से गाय बन गई थी|
मैंने उसे कुरबान करने के लिए उसके पैरों को बांधा तो वह बड़े करुण स्वर में डकारने लगी और उसकी आंखों से आंसू की धारा बहने लगी| उसका यह हाल देखकर मुझे उस पर दया आ गई और मुझसे उसके गले पर छुरी न चल सकी| मैंने ग्वाले से कहा, “इसे ले जा और क़ुरबानी के लिए दूसरी गाय ले आ|”
यह सुनकर मेरी पत्नी बहुत क्रुद्ध हुई और कहने लगी, “इसी गाय की बलि दी जाएगी| ग्वाले के पास इससे अधिक हृष्ट-पुष्ट और कोई गाय नहीं है|”
उसके भला-बुरा कहने पर मैंने फिर छुरी हाथ में ली और गाय की क़ुरबानी देने को उद्यत हुआ| इस पर गाय और भी चीख-पुकार करने लगी| मैं अजीब दुविधा में पड़ गया|
अंत में मैंने छुरी ग्वाले को दे दी और कहा, “मुझसे इस गाय पर छुरी नहीं चलती, तू ही इसकी बलि दे|”
ग्वाले को गाय के रोने-चिल्लाने पर दया न आई और उसने गाय की गरदन पर छुरी फेर दी| जब गाय की खाल उतारी गई तो सबने देखा कि उसके अंदर अस्थि-पंजर मात्र है, मांस का कहीं पता नहीं|
कारण यह था कि गाय का मोटा-ताजा होने तो केवल मायाजाल के कारण था| मैं उस ग्वाले पर नाराज हुआ कि गाय को ऐसी दशा में क्यों रखा जिससे कि वह ऐसी दुबली-पतली हो गई|
मैंने गाय ग्वाले को ही दे दी और कहा, “तू इसे अपने ही काम में ला, मेरी क़ुरबानी करने के लिए कोई बछड़ा ही ले आ, किंतु वह मोटा-ताजा होना चाहिए| इस गाय की तरह नहीं|”
ग्वाला शीघ्र ही एक मोटा-ताजा बछड़ा ले आया| बछड़ा देखने में भी बड़ा सुंदर था| यद्यपि उस बछड़े के बारे में मुझे मालूम न था कि यह मेरा ही पुत्र है तथापि उसे देखकर मेरे हृदय में प्रेम उमड़ने लगा और वह बछड़ा भी मुझे देखते ही रस्सी तुड़ाकर मेरे कदमों पर गिर पड़ा| इस बात से मेरे दिल में प्रेम का स्त्रोत और जोर से उबलने लगा और मैं सोचने लगा कि ऐसे प्यारे बछड़े को कैसे मारूं?
इस भावनाओं ने मुझे अत्यन्त विह्वल कर दिया| उस बछड़े की आंखों से आंसू बहने लगे| इससे उसके प्रति मेरा प्यार और उमड़ा और मैंने ग्वाले से कहा, “इस बछड़े को वापस ले जा और इसकी जगह को दूसरा बछड़ा ले आ|”
इस पर मेरी पत्नी ने कहा, “तुम इतने मोटे-ताजे बछड़े की क़ुरबानी क्यों नहीं देते?”
मैंने कहा, “यह बछड़ा बड़ा प्यारा है, मेरा मन नहीं मान रहा कि इसका वध करूं, तुम इसके लिए जोर मत दो|” लेकिन उस निष्ठुर दुष्टा ने तकरार जारी रखी और विद्वेषवश उसके वध पर जोर देती रही| मैं उसकी बहस से तंग आकर छुरी लेकर पुत्र की गरदन काटने चला| उसने फिर मेरी ओर देखकर आंसू बहाए| मेरे हृदय में ऐसी दया और प्रीति उमड़ी कि छुरी हाथ से गिर गई| फिर मैंने पत्नी से कहा, “मेरे पास एक और बछड़ा है, मैं उसे कुर्बान कर दूंगा|”
वह दुष्टमना फिर भी उसी बछड़े को मारने पर जोर देती रही| किंतु इस बार मैंने उसके बकने-झकने की परवाह नहीं की और बछड़े को वापस कर दिया| हां, पत्नी के हृदय को सांत्वना देने के लिए कह दिया कि बकरीद के दिन इसी बछड़े की बलि दूंगा|
ग्वाला बछड़े को अपने घर ले गया| लेकिन दूसरे दिन तड़के ही मुझसे एकान्त में कहा, “मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूं और मुझे आशा है कि आप मेरी बात सुनकर प्रसन्न होंगे|” उसने कहा, “मेरी बेटी जादू-टोने मेर प्रवीन है| कल जब मैं उस बछड़े को वापस लेकर गया तो वह उसे देखकर हंसी भी और रोई भी| मैंने उस विचित्र बात का कारण पूछा तो बोली कि अब्बा! जिस बछड़े को तुम जिन्दा लौटाकर लाए हो वह हमारे मालिक का बेटा है, इसलिए मैं इसे जीता-जागता देखकर प्रसन्न हुई| रोई इसलिए कि इससे पहले इसकी मां की क़ुरबानी दे दी गई थी| हमारे मालिक की पत्नी ने सौतिया डाह के कारण इन माता-पुत्र को जादू के जोर से गाय और बछड़ा बना दिया था| मैंने अपनी बेटी के मुंह से जैसा सुना, वैसा आपको बता दिया|”
“हे दैत्यराज! यह वृत्तांत सुनकर मैं दंग रह गया| मेरी आंखें फट पड़ीं और हलाल होती उस बछड़े की मां अर्थात मेरी दासी की क़ुरबानी के वक्त की छटपटाहट मेरी आंखों के सामने थिरकने लगी| मैं कुछ देर मर्माहत होकर चुप रहा, फिर ग्वाले के साथ उसके घर गया ताकि इस वृत्तांत को उसकी बेटी के मुंह से सुनूं| सबसे पहले मैं उसकी पशुशाला में गया ताकि बछड़ा बने पुत्र को देखूं| मैं उस पर हाथ फेरूं| इससे पहले ही वह मेरे पास आकर इतना लाड़ करने लगा कि मुझे विश्वास हो गया कि वह मेरा पुत्र ही है| फिर मैंने लड़की के पास जाकर ग्वाले के मुंह से सुना हुआ हाल दुबारा सुना और बड़े ही विनीत भाव से लड़की से पूछा, “क्या तुम इस बछड़े को फिर से मनुष्य का रूप दे सकती हो?”
उसने कहा, “क्यों नहीं मेरे मालिक! यदि आपका हुक्म होगा तो अवश्य मैं ऐसा ही करूंगी|”
“ऐ नेक लड़की! यदि तुम ऐसा कर दोगी तो मैं अपनी सारी संपत्ति तुम्हें दे दूंगा|”
“मुझे धन सम्पदा नहीं चाहिए मालिक…|” लड़की ने मुस्कराकर कहा, “हम लोग आपके सेवक हैं, आप हमारे मालिक हैं| आपकी आज्ञा शिरोधार्य है, किंतु बछड़े को मनुष्य रूप मैं दो शर्तों पर दूंगी – एक तो यह कि इसके मनुष्य बन जाने पर आप उसका निकाह मेरे साथ दें और दूसरा यह कि जिसने इसे मनुष्य से पशु बनाया है, उसे भी थोडा दंड दिया जाए|”
मैंने उत्तर दिया, “मुझे तुम्हारी पहली शर्त बिलकुल मंजूर है, मैं तुम्हारा विवाह अपने पुत्र के साथ कर दूंगा और तुम दोनों को इतना धन-धान्य दूंगा कि जीवनपर्यन्त तुम्हें किसी चीज की कमी नहीं रहेगी| दूसरी शर्त का निर्णय तुम्हारे ही हाथ छोड़ता हूं, तुम जो भी दंड उसके लिए उचित समझोगी वही दंड उस दुष्टा को दिया जाएगा| हां, यह जरूर कहूंगा कि यद्यपि वह दुष्टा दंडनीय है किंतु उसे प्राणदंड मत देना|”
लड़की ने कहा, “जैसा उसने आपके पुत्र के साथ किया है, वैसा ही मैं उसके साथ करूंगी|” यह कहकर उसने एक प्याले में पानी लिया और उसे अभिमन्त्रित करके बछड़े के सामने लाकर कहा, “ऐ खुदा के बंदे, अगर तू आदमी है और केवल जादू के कारण बछड़ा बना है तो अपना पूर्वरूप प्राप्त कर ले|” यह कहकर उसने अभीमंत्रित जल उस पर छिड़का और वह तुरंत ही मनुष्य रूप में आ गया|
मैंने उसे छाती से लगा लिया| मैं काफी देर तक उसे प्यार करता रहा| उसे देख-देखकर मेरा जी नहीं भरता था| अंत में मैंने उससे कहा, “इस लड़की के कारण ही तुमने फिर से मानव देह पाई है, तुम इसका अहसान चुकाओ और इसके साथ विवाह कर लो|”
पुत्र ने सहर्ष मेरी बात मान ली| लड़की ने इसी प्रकार जल को अभिमन्त्रित करके मेरी पत्नी को हिरनी का रूप दे दिया| मेरे पुत्र ने उस लड़की के साथ विवाह किया किंतु दुर्भाग्यवश वह थोड़े ही समय के बाद मर गई| मेरे पुत्र को इतना दुख हुआ कि वह देश छोड़कर कहीं चला गया| बहुत दिनों तक मुझे उसका कोई समाचार नहीं मिला| अंतत: मैं उसे ढूंढने निकला| मुझे किसी पर इतना भरोसा नहीं था कि अपनी हिरनी बनी हुई पत्नी को उसके पास छोड़ता| इसलिए मैं उसे अपने साथ लिए हुए अपने पुत्र की खोज में देश-विदेश घूम रहा हूं| यही मेरी और इस हिरनी की कहानी है| अब आप स्वयं निर्णय कर लें कि यह घटना विचित्र है या नहीं|”
दैत्य ने कहा, “नि:संदेह विचित्र है| मैंने व्यापारी के अपराध का एक तिहाई हिस्सा माफ कर दिया|”
जब पहला यात्री अपनी कहानी कह चुका तो दूसरे यात्री ने, जो अपने साथ दो काले कुत्ते लिए था, दैत्य से कहा, “मैं भी अपना और इन दोनों कुत्तों का इतिहास आपके सम्मुख रखता हूं| यदि यह पहली कहानी से भी अच्छी हो तो आशा करता हूं कि उसे सुनने के बाद व्यापारी के अपराध का एक तिहाई भाग और क्षमा कर दिया जाए|”
दैत्य ने कहा, “अगर तुम्हारी कहानी पहली कहानी से अधिक विचित्र हुई तो मैं तुम्हारी बात जरूर मानूंगा|” इस पर उस यात्री ने यह कथा सुनाई –