सेवा निष्ठा का चमत्कार (भगवान हनुमान जी की कथाएँ) – शिक्षाप्रद कथा
एक दिन की बात है कि भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न तीनों भाई माता जानकी के पास पहुंचे| माता जानकी ने पूछा – “आज तीनों भाई एक साथ कैसे पधारे?”
भरत जी ने कहा – “प्रभु राम की छोटी-से-छोटी और बड़ी-से-बड़ी सभी सेवा हनुमान जी कर लेते हैं| हम लोग चाहते हैं कि कुछ सेवा का अवसर हमें भी मिले, किंतु हनुमान जी सेवा के लिए निरंतर हाथ जोड़े प्रभु के मुखारविंद की ओर ही निहारा करते हैं| इस कारण हमें प्रभु की सेवा का कोई सुयोग नहीं मिल पाता| आपके चरणों में यही निवेदन करने हम लोग यहां आए हैं|”
स्वयं माता सीता जी भी प्रभु की सेवा का सुयोग प्राप्त करने के लिए व्यग्र थीं| उन्होंने तीनों भाइयों से कहा – “आप लोगों को भी प्रभु-सेवा का सुअवसर प्राप्त होना चाहिए, यह तो मैं भी चाहती हूं, किंतु हनुमान जी के कारण मैं भी प्रायः प्रभु की सेवा से वंचित रह जाती हूं| पर किया क्या जाए? आप लोग कोई उपाय बताइए|”
गंभीर विचार-विमर्श के उपरांत निश्चय हुआ कि प्रभु के शय्या त्यागने से लेकर पुनः शयनकाल तक की सेवा की एक तालिका बनाई जाए और उन सेवाओं को हम लोग अपनी-अपनी इच्छानुसार बांट लेंगे| उस निर्णीत सेवा की तालिका पर प्रभु के हस्ताक्षर करवाकर उस पर राजमुद्रा की छाप लगवा ली जाए| इस प्रकार हनुमान जी स्वतः सेवा-निवृत्त हो जाएंगे और हम लोगों को प्रभु की सेवा का अवसर प्राप्त होता रहेगा|
तालिका बन गई| अब प्रभु के हस्ताक्षर का प्रश्न था| माता जानकी ने कहा – “हस्ताक्षर तो मैं करवा लूंगी|”
माता जानकी की बात सुनकर पूर्ण आश्वस्त होकर तीनों भाई वहां से चले आए| रात्रि में माता जानकी ने प्रभु से निवेदन किया – “आप इस सेवा-तालिका पर हस्ताक्षर कर दें|”
“कैसी सेवा-तालिका?” प्रभु के पूछने पर माता जानकी ने उत्तर दिया – “आपकी सेवा के लिए आपके तीनों भाइयों ने मेरी सहमती से यह तालिका तैयार की है|”
प्रभु श्रीराम ने ध्यानपूर्वक पूरी तालिका देखी| उसमें हनुमान जी का नाम न देखकर उन्हें षड्यंत्र का अनुमान तो हुआ, किंतु उन्होंने मुस्कुराते हुए उस पर हस्ताक्षर कर दिए| फिर माता जानकी ने निवेदन किया – “इस पर राजमुद्रा की छाप लग जानी चाहिए|”
प्रभु श्रीराम ने कहा – “कल राजसभा में राजमुद्रा की छाप भी लग जाएगी|”
दूसरे दिन उस सेवा-सूची पर राजमुद्रा की छाप भी लग गई तथा उसकी एक-एक प्रति राजसभा में वितरण कर दी गई| भरतादि बंधुओं के साथ माता जानकी की इस गोष्ठी में निर्णीत प्रस्ताव से हनुमान जी सर्वथा अपरिचित थे| वे प्रभु की सेवा के लिए आगे बढ़े ही थे कि उन्हें रोककर कहा गया – “आज से प्रभु की सेवा बांट दी गई है| अतएव आप इस सेवा से पृथक ही रहें|”
“सेवा वितरण का कार्य कब हुआ?” हनुमान जी ने पूछा ही था कि उनके हाथ में राजमुद्रांकित प्रभु की सेवा तालिका दे दी गई| अत्यंत ध्यानपूर्वक तालिका देख लेने के बाद हनुमान जी ने कहा – “अरे, इसमें तो मेरा कहीं नाम ही नहीं है|”
उत्तर मिला – “यह तालिका आपकी, अनुपस्थिति बनी थी| हां, इस तालिका के अतिरिक्त भी कोई सेवा हो तो आप उसे ले सकते हैं|”
हनुमान जी ने कहा – “प्रभु श्रीराम को जंभाई आने पर चुटकी बजाने की सेवा इस तालिका में नहीं है|”
लक्ष्मण जी ने कहा – “चाहें तो आप यह सेवा ले लें|”
“ठीक है, पर इस तालिका की तरह मेरी सेवा पर भी प्रभु के हस्ताक्षर हो जाएं और उस पर राजमुद्रा भी अंकित कर दी जाए|”
इसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं थी| भक्तवत्सल प्रभु ने हनुमान जी की सेवा के पत्र पर तुरंत हस्ताक्षर कर दिए और उस पर राजमुद्रा की छाप भी लगा दी गई| बस, हनुमान जी तुरंत चुटकी तानकर प्रभु के सम्मुख वीरासन से बैठ गए| पता नहीं, प्रभु को कब जंभाई आ जाए, इसलिए चुटकी बजाने की सेवा के लिए उन्हें सतत सावधान रहना नितांत आवश्यक था|
प्रभु उठे और सेवादक्ष हनुमान जी भी उनके साथ ही उठे| प्रभु चले और उनकी ओर मुंह किए चुटकी ताने हनुमान जी भी आगे बढ़े| प्रभु बैठे, हनुमान जी भी बैठे| हनुमान जी प्रतिक्षण चुटकी ताने परम प्रभु के मुखारविंद की ओर निहारते रहे|
श्रीराम भोजन करने बैठे और हनुमान जी उनके सामने चुटकी ताने बैठ गए| हनुमान जी को अपनी सेवा की ही चिंता थी| यहां तक कि भोजन और जलपान भी प्रभु की ओर चुटकी ताने हनुमान जी ने बाएं हाथ से ग्रहण किया| एक क्षण के लिए उनकी दृष्टि प्रभु के मुखारविंद से नहीं हटती थी|
रात्रि आई| हनुमान जी प्रभु की शय्या के सम्मुख चुटकी ताने खड़े थे| अर्द्धरात्रि व्यतीत हो गई, पर सेवागण्य हनुमान जी अपनी सेवा से चूकना नहीं जानते थे| किंतु माता जानकी की आज्ञा से उन्हें रात्रि के समय प्रभु से पृथक होना पड़ा| हनुमान जी ने सोचा कि जंभाई आने का समय तो निश्चित नहीं है| यदि मेरे परम प्रभु को रात्रि में जंभाई आ जाए, तब मैं अपनी सेवा से वंचित रह जाऊंगा| अतः वे प्रभु के शयनागार के समीप ऊंचे छज्जे पर बैठकर प्रभु का नाम लेते हुए चुटकी बजाने लगे| प्रभु के परम भक्त हनुमान जी प्रभु को जंभाई आने की संभावना से क्षुधा-तृषा एवं निद्रा का परित्याग कर जब चुटकी बजाने जा रहे हैं, तब अपने वचन के अनुसार प्रभु को जंभाई भी आनी चाहिए|
फिर क्या था? श्रीराम को जंभाई आने लगी| एक बार, दो बार, तीन बार, चार-बार, दस बार, पचास बार नहीं, अनवरत रूप से उन्हें जंभाई पर जंभाई आने लगी| तब जंभाई लेते-लेते प्रभु थक गए तो कष्ट से उनका मुंह खुला ही रह गया|
यह दृश्य देखकर माता सीता घबराईं| व्याकुल होकर उन्होंने माता कौशल्या जी को बुलाया| यह देखकर माता कौशल्या चिल्ला उठीं| फिर तो माता सुमित्रा, कैकेयी, भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न उनकी पत्नियां, सभी एकत्र हो गए| सबने देखा कि प्रभु श्रीराम का मुंह खुला-का-खुला पड़ा है| वह किसी प्रकार बंद ही नहीं हो रहा है|
राज्य के प्रमुख चिकित्सक आए| उन्होंने बहुमूल्य औषधियां दीं, किंतु उन औषधियों से तनिक भी लाभ नहीं हुआ| उनका मुंह खुला का खुला ही रहा| इतना ही नहीं, अब अधिक देर से मुख खुला रहने के कारण नेत्रों से धीरे-धीरे आंसू निकलने लगे|
माता कौशल्या, माता सुमिता, माता कैकेई, तीनों भाई, भगवती सीता आदि सभी व्याकुल होकर रुदन करने लगे| अत्यंत करुणामय दृश्य उपस्थित हो गया| यह समाचार सुनकर गुरु वशिष्ठ जी भी वहां पहुंचे| प्रभु राम ने हाथ जोड़कर उनके चरणों में प्रणाम किया, किंतु मुंह खुला होने से कुछ बोल न सके| नेत्रों से आंसू बहते ही जा रहे थे| इस चिंताजनक कारुणिक स्थिति में प्रभु के अनन्य सेवक हनुमान जी को न देखकर वशिष्ठ जी को बड़ा आश्चर्य हुआ| उन्होंने पूछा – “हनुमान जी कहां हैं?”
माता जानकी ने अत्यंत विनयपूर्वक उत्तर दिया – “प्रभो! हनुमान जी के साथ बड़ा अन्याय हुआ है| उनकी सारी सेवाएं छीन ली गईं| तब उन्होंने चुटकी बजाने की सेवा ले ली| वह दिनभर प्रभु के सम्मुख चुटकी ताने खड़े या वीरासन में बैठे रहे| अपनी इस सेवा के लिए उन्होंने भोजन और शयन की भी चिंता त्याग दी| रात्रि में अत्यंत कष्ट से वह यहां से गए| वह दुख से व्याकुल होकर कहीं रुदन कर रहे होंगे|”
सीता की बात सुनकर वशिष्ठ जी तुरंत दौड़े| देखा, प्रभु के शयनागार के सम्मुख ऊंचे छज्जे पर हनुमान जी प्रभु के ध्यान में मग्न होकर उनके नाम का कीर्तन कर रहे हैं और उनके दाहिने हाथ से निरंतर चुटकी बजती जा रही है| वशिष्ठ जी ने उन्हें पकड़कर हिलाया तो हनुमान जी के नेत्र खुले| अपने सम्मुख महामुनि वशिष्ठ के दर्शन कर हनुमान जी ने उनके चरणों में प्रणाम किया| वशिष्ठ जी की आज्ञानुसार हनुमान जी उनके पीछे-पीछे चल पड़े|
हनुमान जी ने प्रभु श्रीराम का खुला मुखारविंद एवं उनके नेत्रों से बहते आंसू देखे तो वे अत्यंत व्याकुल हो गए| अधीर बजरंग बली हनुमान जी के नेत्रों से भी आंसू बहने लगे| चिंता और दुख के कारण उनकी चुटकी बंद हो गई और चुटकी बंद होते ही प्रभु का मुखारविंद भी बंद हो गया|
हनुमान जी ने प्रभु के चरणों में अपना मस्तक रख दिया और वे अबोध शिशु की भांति सिसकने लगे| माता सीता ने हनुमान जी को उठाकर प्रेम से कहा – “बेटा हनुमान! अब प्रभु की सारी सेवाएं तुम्हीं किया करो| तुम्हारी सेवा में कभी कोई किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करेगा|”
यह मैया सीता, लक्ष्मण, भरत एवं शत्रुघ्न आदि का विनोद था| वे हनुमान जी को सेवा से तुम्हें वंचित थोड़े ही करना चाहते थे|
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