राजा सुबाहु पर कृपा (भगवान हनुमान जी की कथाएँ) – शिक्षाप्रद कथा
भगवान श्रीराम के अश्वमेध यज्ञ के अश्व के साथ शत्रुघ्न की सेना चक्रांका नगरी के समीप पहुंची| उस नगरी के नरेश धर्मात्मा सुबाहु थे| वे प्रजापालक, परम पराक्रमी, अनुपम योद्धा तो थे ही, क्षीराब्धिशायी लक्ष्मीपति विष्णु के अनन्य भक्त भी थे| वे दयामय विष्णु की मधुर-मनोहर लीला-कथा के अतिरिक्त अन्य वार्ता सुनना भी नहीं चाहते थे| वे धर्मपरायण आदर्श नरपति सदा विष्णु बुद्धि से भक्तिपूर्वक ब्राह्मणों की पूजा करते थे| परमधर्म से विमुख वे महान राजा स्वधर्म पालन में सतत तत्पर रहते थे|
आखेट के लिए निकले हुए राजा के वीराग्रवी कुमार दमन की दृष्टि उस अश्व पर पड़ी| बस वीरवर दमन ने अश्व को पकड़ लिया| शत्रुघ्न की विशाल वीर-वाहिनी के साथ राजकुमार दमन का भयानक युद्ध हुआ| सुबाहुनंदन दमन के प्रबल पराक्रम एवं अद्भुत युद्धकौशल को देखकर शत्रुघ्न की सेना चकित हो गई| शत्रुघ्न की सेना का भीषण संहार हुआ, भरतनंदन पुष्कल के साथ भयानक युद्ध में दमन मुर्च्छित हो गए|
फिर तो राजा सुबाहु स्वयं सुवर्णभूषित रथ पर आरूढ़ होकर निकले| गदायुद्ध में प्रवीण राजा सुबाहु के भाई सुकेतु और उनके युद्धकाल में निपुण पुत्र चित्रांग और विचित्र भी अपने-अपने आयुध धारण कर युद्ध क्षेत्र में उपस्थित हुए|
राजा सुबाहु ने अपने वीरपुत्र दमन को रथ में बैठाकर अपनी सेना क्रौंच-व्यूह में खड़ी कर दी| उसके मुख के स्थान पर सुकेतु और कंठ की जगह चित्रांग सावधान होकर खड़े हो गए| पंखों के स्थान पर नरेश के वीर पुत्र दमन और विचित्र डट गए| स्वयं राजा सुबाहु पुच्छभाग में स्थित थे|
अत्यंत घमासान युद्धि छिड़ गया| अतुल पराक्रमी राजकुमार चित्रांग और भरतपुत्र पुष्काल परस्पर एक-दूसरे को पराजित करने का प्रयत्न कर रहे थे| राजकुमार चित्रांग की वीरता एवं शस्त्र कौशल से पुष्कल अत्यंत चकित थे, किंतु उनके तीक्ष्णतम शर से चित्रांग का मस्तक कटकर पृथ्वी पर गिर पड़ा| चित्रांग के स्वर्ग प्रयाण से राजा सुबाहु भीषण युद्ध में तत्पर हो गए| उनके महान संहार से पार्श्वभाग की रक्षा करने वाले अतुलित बलशाली वज्रांग हनुमान जी उनकी ओर दौड़े| महावीर पवनपुत्र मेघ की भांति विकट गर्जना कर रहे थे| राजा सुबाहु ने अपने सम्मुख हनुमान जी को देखते ही उन पर तीक्ष्णतम दस शरों से प्रहार किया, किंतु महाशक्तिशाली हनुमान जी ने उन शरों को हाथों में पकड़कर उन्हें टुकड़े-टुकड़े करके फेंक दिया और तुरंत राजा सुबाहु को रथ सहित अपनी लंबी पूंछ में लपेट लिया|
हनुमान जी को रथ लेकर जाते हुए देखकर राजा सुबाहु कपि श्रेष्ठ हनुमान जी पर बड़े वेग से तीक्ष्ण शरों की वर्षा करने लगे| उनके अंग-प्रत्यंग राजा सुबाहु के शरों से बिंध गए थे| उनका सारा शरीर लहूलुहान हो गया| यह देख हनुमान जी बड़े वेग से उछले और राजा सुबाहु के विशाल वक्ष पर अपने चरणों से प्रहार किया| उस प्रहार को राजा सुबाहु नहीं सह सके और वे मुख से रक्त वमन करते हुए धरती पर गिरकर मुर्च्छित हो गए|
जब राजा सुबाहु की मूर्च्छा दूर हुई तो उनके नेत्रों से आनंदमय प्रेमाश्रु प्रवाहित होने लगे| उन्होंने तुरंत अपने भाई तथा पुत्रों को युद्ध बंद कर देने का संकेत किया| उन्होंने सबको बताया – “आज हमारा पुण्यतम दिवस है, आज ही मेरा सौभाग्य उदित हुआ है| प्राचीनकाल की बात है कि मैं तत्वज्ञान की इच्छा से तीर्थों में गया था| सौभाग्यवश मैं असितांग मुनि की सेवा में पहुंच गया| वे वीतराग महात्मा मुझे दशरथ नंदन श्रीराम को परब्रह्म परमात्मा एवं उनकी हृदयाधिकारिणी विदेहजा को चिन्मयी शक्ति के मूर्तिमान विग्रह बताने लगे| संसार-सागर से तारने के लिए उन्हीं श्री सीताराम की उपासना का आदेश देने लगे| किंतु मुझे उनके वचनों पर विश्वास नहीं हुआ| अजन्मा का जन्म कैसे? अकर्ता का संसार में आने का प्रयोजन क्या? मेरा सहज संदेह था|
महर्षि ने कुपित होकर मुझे शाप दे दिया कि नीच, तू श्रीराम के यथार्थ स्वरूप को नहीं जानता, फिर भी प्रतिवाद कर रहा है| उन्हें साधारण मनुष्य जानकर उनका उपहास हर रहा है| इस कारण तू तत्वज्ञान तो प्राप्त ही नहीं कर सकेगा, केवल उदर-पोषण में लगा रहेगा|
महामुनि तो शाप भय से व्याकुल होकर मैंने उनके चरण पकड़ लिए| मुझे रोते देखकर दयामय मुनि ने कहा कि राजन! जब तुम भगवान श्रीराम के अश्वमेध यज्ञ के अश्व को पकड़कर उनके यज्ञ में विघ्न उपस्थित करोगे, तब ज्ञानमूर्ति सद्गति भक्ति मुक्ति दाता हनुमान जी बड़े वेग से तुम्हारे वक्ष पर पाद प्रहार करेंगे| उन तत्व प्रकाशक पवननंदन के स्पर्श से ही तुम्हें तत्वज्ञान की प्राप्ति होगी|
सुबाहु ने आगे कहा – “और आज उन दुर्गतिनाशक परमपावन कृपामय श्रीरामदूत ने अपने लोकपावन चरण कमलों के प्रहार से मेरे वक्ष को स्पर्श कर दिया| आज मेरी बुद्धि शुद्ध हो गई, मैं पवित्र हो गया| मैं ही नहीं तुम सब धन्य हो गए|”
भगवान श्रीराम के अश्व के साथ प्रचुर समृद्धि-संपन्न कोष, हाथी, घोड़े, वस्त्र, रत्न, मोती तथा मूंगे आदि अगणित द्रव्य लेकर धर्मात्मा राजा सुबाहु विचित्र, दमन, सुकेतु तथा अन्यान्य शूरवीरों के साथ पैदल ही चले| भगवान श्रीराम के ध्यान एवं हनुमान जी की कृपा की स्मृति से उनका हृदय उपकृत एवं आनंदमग्न था|
राजा सुबाहु के आगमन का समाचार प्राप्त होते ही शत्रुघ्न उनसे गले मिले| अपना सर्वस्व समर्पित करने की कामना व्यक्त कर कुमार दमन की युद्धारंभ के लिए क्षमायाचना करते हुए महाराज सुबाहु ने अधीर होकर पूछा – “भगवान श्रीराम के परमभक्त हनुमान जी कहां हैं? उन्हीं की कृपा से मुझ महामूढ़ को परमप्रभु श्रीराम के दर्शन की तीव्रतम लालसा उत्पन्न हुई है|”
जब उन्होंने हनुमान जी को देखा तो उनके मुक्तिदाता चरणों पर गिर पड़े| किंतु महावीर हनुमान जी ने उन्हें बीच में ही उठाकर अपने गले से लगा लिया|
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