प्रार्थना – भक्त तुलसीदास जी दोहावली
बारक सुमिरत तोहि होहि तिन्हहि सम्मुख सुखद|
क्यों न संभारहि मोहि दया सिंधु दसरत्थ के||
प्रस्तुत दोहे में तुलसीदासजी कहते हैं कि हे दया के सागर दशरथनंदन ! जो तुम्हें एक बार भी स्मरण करते हैं, तुम उनके सम्मुख होकर उन्हें सदा सुख देने वाले बन जाते हो, फिर मेरी सुधि तुम क्यों नहीं लेते?