Homeभक्त बुल्ले शाह जी काफियांअसां मरना नाहीं – काफी भक्त बुल्ले शाह जी

असां मरना नाहीं – काफी भक्त बुल्ले शाह जी

असां मरना नाहीं

साडे वल मुखड़ा मोड़ वे प्यारिआ,
साडे वल मुखड़ा मोड़| टेक|

आपे पाइयां कुंडियां तैं,
ते आपे खिचदा एं डोर|

अर्श कुर्सी ते बागां मिलियां,
मक्के पै गिआ शोर|

बुल्ले शाह असां मरना नाहीं|

मर जावे कोई होर|

हम मरेंगे नहीं

इस छोटी-सी भावमय काफ़ी में बुल्लेशाह अपने प्रियतम से प्रार्थना करते हैं कि हे प्रिय, हमारी ओर मुख मोड़ो अर्थात हम पर कृपादृष्टि करो| आप स्वयं ही तो हमें कुंडी (मछली पकड़ने की बंसी के कांटे) में फंसाते हो और स्वयं ही उसकी डोरी खींचते हो| गगनमंडल में अजान होने लगी है और उसकी ध्वनि मक्के तक पहुंची|1 बुल्लेशाह कहते हैं कि हमें नहीं मरना (क्योंकि हम तो प्रिय रूप हो चुके हैं) भले ही कोई और मर जाए|

अब तो जा