दिखावे की कीमत
एक बहुत ही सुंदर हरा-भरा वन था और वन के एक किनारे पर सुरम्य सरोवर था| उस सरोवर में बहुत-से हंस रहते थे| उन हंसों के राजा का नाम हंसराज था| वन में भी बहुत से पक्षी रहते थे, उन्हीं में एक था कनकाक्ष नामक उल्लू| उस उल्लू और हंसराज की प्रगाढ़ मित्रता थी|
उल्लू ने भी हंसराज से कह रखा था कि वह उल्लुओं का राजा है जबकि ऐसा था नही| अतः उसके मन में सदैव यह विचार रहता था कि वह कुछ ऐसा करे कि हंसराज को विश्वास हो जाए कि वह वास्तव में राजा है|
उल्लू वन में एक वृक्ष के कोटर में रहता था| एक दिन उस पेड़ के पास राज्य के सैनिकों ने खेमा गाड़ दिया| उनके राजसी ठाठबाट देखकर उल्लू दंग रह गया और उसने यही उचित अवसर समझा| उसके मन में था कि हंसराज को यहाँ लाकर ऐसा दर्शाऊँगा कि जैसे ये मेरे ही आदमी है| हंसराज मेरा वैभव देखकर अवश्य प्रभावित हो जाएगा| इसलिए कनकाक्ष हंसराज को बुलाने चल दिया|
उल्लू जब सरोवर के किनारे पहुँचा तो हंसराज अपने साथियों के साथ जलक्रीड़ा में मग्न था| जब उसने कनकाक्ष को देखा तो किनारे आकर बोला, ‘कहो मित्र, कैसे हो?’
‘मैं तो बिल्कुल ठीक हूँ लेकिन एक शिकायत है- मैं तुमसे मिलने रोज़ यहाँ आता हूँ, पर तुम कभी मेरे घर नही आते|’
कनकाक्ष कुछ देर तो चुप रहा, फिर आगे बोला, ‘यदि तुम मुझे अपना सच्चा मित्र समझते हो तो तुम्हें आज ही मेरे घर चलना होगा|’ इस तरह कनकाक्ष जबरदस्ती हंसराज को अपने घर की ओर ले चला|
वन में आकर दोनों उस वृक्ष पर बैठ गए, जिसके पास राजसैनिकों का खेमा गड़ा था| सैनिकों की ओर इशारा करते हुए कनकाक्ष गर्वोन्मत स्वर में बोला, ‘ये सब मेरे आदमी है, मेरे प्रति बहुत ही निष्ठावान है| बिना मेरी अनुमति लिए कुछ नही करते|’ अभी उसने अपनी बात पूरी की ही थी कि सैनिक वहाँ से कूच की तैयारी करने लगे| यह देखकर हंसराज बोला, ‘ये तो जाने की तैयारी कर रहे है?’
‘बिना मेरी अनुमति लिए कैसे जा सकते है|’ कहकर कनकाक्ष मनहूस आवाज़ में ‘हू…हू’ करने लगा| उल्लू का बोलना अपशकुन माना जाता है, अतः सैनिकों ने रवानगी कुछ देर टाल दी| फिर सैनिकों ने दो-तीन बार वहाँ से कूच करने का प्रयास किया लेकिन कनकाक्ष ने अपनी मनहूस आवाज़ निकालकर उन्हें रुकने पर विवश कर दिया| उसका तो प्रयास ही यह सिद्ध करना था कि वह इन लोगों का राजा है|
इस बार जब सैनिक कूच करने को हुए तो उल्लू फिर ‘हू…हू’ करने लगा| इस पर एक सैनिक को क्रोध आ गया और उसने कमान पर तीर चढ़ाकर उल्लू की ओर छोड़ दिया| लेकिन वह तीर उल्लू को न लगकर हंस की गर्दन में जा धँसा और उसके प्राण पखेरू उड़ गए|
उल्लू को अपनी मूर्खता पर बहुत पश्चाताप हुआ, जिसकी वजह से उसके मित्र की जान चली गई|
शिक्षा: वास्तविकता छिपाए नही छिपती| असली चेहरा तो एक दिन सामने आ ही जाता है| मित्रता में तो वैसे भी कोई भेदभाव नही रखना चाहिए| उल्लू यदि अपनी वास्तविकता न छिपाता तो उसे अपने प्रिय मित्र से हाथ नही धोना पड़ता| मूर्ख मित्र का संग सदैव हानिकारक होता है|