ध्यान – भक्त तुलसीदास जी दोहावली
राम बाम दिसि जानकी लखन दाहिनी ओर|
ध्यान सकल कल्यानमय सुरतरु तुलसी तोर||
प्रस्तुत दोहे में तुलसीदासजी कहते हैं कि प्रभु श्रीरामजी के बाईं ओर श्रीजानकीजी हैं और दाईं ओर श्रीलक्ष्मणजी हैं – यह ध्यान सम्पुर्ण रूप से कल्याणमय है| हे तुलसी ! तेरे लिए तो यह मनचाहा फल देने वाला कल्पवृक्ष ही है|
सीता लखन समेत प्रभु सोहत तुलसीदास|
हरषत सुर बरषत सुमन सगुन सुमंगल बास||
प्रस्तुत दोहे में तुलसीदासजी कहते हैं कि भगवान श्रीरामजी श्रीसीताजी एवं श्रीलक्ष्मणजी के साथ सुशोभित हो रहे हैं, देवतागण हर्षित होकर फूलों की वर्षा कर रहे हैं| प्रभु का यह सगुण ध्यान सुमंगल-परम कल्याण का निवास स्थान है|
पंचबटी बट बिटप तर सीता लखन समेत|
सोहत तुलसीदास प्रभु सकल सुमंगल देत||
प्रस्तुत दोहे में तुलसीदासजी कहते हैं कि पंचवटी में वट वृक्ष के नीचे भगवान श्रीरामचंद्रजी श्रीसीताजी और श्रीलक्ष्मणजी सहित सुशोभित हैं|ऐसा ध्यान सब सुमंगलों को देता है|