धर्म और दुकानदारी
एक दिन एक पण्डितजी कथा सुना रहे थे| बड़ी भीड़ इकट्ठी थी| मर्द, औरतें, बच्चे सब ध्यान से पण्डितजी की बातें सुन रहे थे|
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पण्डितजी ने कहा – “इस दुनिया में जितने प्राणी हैं, सबमें आत्मा है, सारे जीव एक-समान हैं|
भीड़ में एक लड़का और उसका बाप बैठा था| पण्डितजी की बात लड़के को बहुत पसंद आई और उसने उसे गांठ बांध ली| अगले दिन लड़का दुकान पर गया| थोड़ी देर में एक गाय आई और दुकान के सामने रखे अनाज को खाने लगी| लड़के ने उसे देखा तो उसको पण्डितजी की बात याद आ गई| उसने कहा – “ठीक है, हममें और गाय में अंतर ही क्या है? यह खाती है तो खाए|”
उसी समय उसका बाप आ गया| गाय को अनाज खाते और लड़के को चुपचाप बैठे देखकर उसका पारा चढ़ गया| उसने कहा – “मुर्ख! देखता नहीं गाय नुकसान कर रही है?”
लड़के ने कहा – “पिताजी, कल आपने पण्डितजी से सुना था न, सब जीव एक समान हैं?”
बाप ने उसको कसकर दो चांटे जमाए और बोला – “अरे बुद्धू, बात सुनने की थी, दुकान चलाने की नहीं| अगर तुने आगे ऐसा किया तो दुकान का सफाया हो जाएगा|”
बाप की बात सच थी| धर्म और व्यापार साथ नहीं चलते|