संतोष

संतोष

कुछ दिन पहले की बात है| हरियाणा के औधोगिक नगर फरीदाबाद में इंग्लैंड में बसा भारत-मूल का एक प्रवासी एक स्थानीय वैध जी के पास पहुँचा|

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उन्होंने उसका पुरान दमा ठीक कर दिया| ऐसे ही कई दूसरे पुराने रोगों का भी उन्होंने इलाज किया था| प्रवासी भारतीय ने वैध जी से कहा- “आप बर्तानिया चले, वहाँ आप अपनी प्रैक्टिस शुरु करें|” वैध जी ने उत्तर दिया- “मेरे पास न कोई डिग्री है और न कोई सनद| वहाँ उनके बिना चिकित्सा की कोई अनुमति नहीं| मैं वहाँ क्या करूँगा?”

मैट्रिक के इम्तेहान के बाद वैध जी जगरांव से फरीदाबाद आए थे| उन्होंने यहाँ अपने चाचा के साथ आयुर्वेद की कई किताबें पढ़ी| अपनी बनी दवाइयों की उन्होंने परीक्षा की, उन्हें आजमाया तो वे कामयाब सिद्ध हुई| दमा, एग्जिमा, जोड़ो के दर्द आदि अनेक जीर्ण रोगों में इन दवाइयों ने चमत्कार कर दिखाया| पिछले दिनों अंग्रेजों के पत्रकार श्री खुशवंत सिंह ने वैध जी से कहा- “इन चमत्कारी नुस्खों की पेटेंट क्यों नहीं करवा लेते?” वैध जी ने जवाब दिया- “इसकी कोशिश की थी, परंतु पेटेंट करने का पैसा माँगते हैं| मेरे पास इतने पैसे नहीं है कि उन्हें पेटेंट करवा लूँ| फिर उनकी दूसरी माँग है कि मैं उन्हें इन नुस्खों की दवाइयों का रहस्य बतला दूँ| आप ही कहिए, मैं इन दवाइयों का रहस्य कैसे बतला दूँ?”

इस पर पत्रकार महोदय बोले- “वैध जी, अपने नुस्खों की दवाइयाँ ज्यादा तादाद में बनाओ, थोड़ी पब्लिसिटी करो, लखपति बन जाओगे|”

वैध जी मुस्कुराए बोले- “दो वक्त की रोटी के लिए काफ़ी कुछ मिल जाता है, और सब जानते हैं कि दौलत नींद नहीं खरीद सकती| मैं गहरी नींद सोता हूँ| मैं ऐसे ही ठीक हूँ|” प्रत्येक व्यक्ति को संतोषजनक जीवन ही जीना चाहिए|

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