Home2018May (Page 3)

औरंगजेब एक कट्टर मुसलमान था| जो कि अपनी राजनीतिक व धार्मिक उन्नति चाहता था| इसके किए उसने हिंदुओं पर अधिक से अधिक अत्याचार किए| कई प्रकार के लालच व भय देकर हिंदुओं को जबरदस्ती मुसलमान बनाया| उसने अपने जरनैलो को भी आज्ञा दे दी हिंदुओं को किसी तरह भी मुसलमान बनाओ| जो इस बात के लिए इंकार करे उनका क़त्ल कर दिया जाए| 

जब श्री गुरु हरिगोबिंद जी (Shri Guru Hargobind Ji) ने गुरु गद्दी अपने छोटे पोत्र श्री हरि राय जी (Shri Guru Harrai Ji) को दी तथ स्वंय ज्योति-ज्योत समाने का निर्णय कर लिया तो माता नानकी जी ने आपको हाथ जोड़कर विनती की कि महाराज! मेरे पुत्र जो कि संत स्वरुप हैं, उनकी ओर आपने ध्यान नहीं दिया| उनका निर्वाह किस तरह होगा?

रानियों के महल से वापिस आकर कुछ समय बाद गुरु जी को बुखार हो गया जिससे सबको चिंता हो गई| बुखार के साथ-साथ दूसरे दिन ही गुरु जी को शीतला निकल आई| जब एक दो दिन इलाज करने से बीमारी का फर्क ना पड़ा तो इसे छूत की बीमारी समझकर राजा जयसिंह के बंगले से आपको यमुना नदी के किनारे तिलेखरी में तम्बू कनाते लगाकर भेज दिया|

कीरत पुर में गुरु हरि राय जी के दो समय दीवान लगते थे| हजारों श्रद्धालु वहाँ उनके दर्शन के लिए आते और अपनी मनोकामनाएँ पूरी करते| एक दिन गुरु हरि राय जी ने अपना अन्तिम समय नजदीक पाया और देश परदेश के सारे मसंदो को हुक्मनामे भेज दिये कि अपने संगत के मुखियों को साथ लेकर शीघ्र ही किरत पुर पहुँच जाओ|

मंगल अष्ट गुरु जी ||
हरि किषण भयो अषटम बलबीरा || 
जिन पहुँचे देहली तजिओ सरीरा || 
बाल रूप धरिओ स्वांग रचाइि || 
तब सहिजे तन को छोड सिधाइि || 
इिउ मुगलन सीस परी बहु छारा || 
वै खुद पति सों पहुचे दरबारा || 
(पउड़ी २३ || वार ४१ || भाई गुरदास दूजा ||)

दूसरे दिन कार्तिक वदी ९ संवत १७१८ विक्रमी को गुरु जी ने अपने आसन पर चौकड़ी मार ली| अपने श्रद्धानंद स्वरूप में वृति जोड़कर शरीर को त्याग दिया व सच क्खंड जा विराजे| आप जी के पांच तत्व के शरीर को चन्दन कि चिता में तैयार करके गुरु हरिगोबिंद जी के द्वारा निर्मित पतालपुरी के स्थान के पास अग्निभेंट कर दिया गया|

गुरु हरिगोबिंद जी (Shri Guru Hargobind Ji) ने अपना अंतिम समय नजदीक पाकर श्री हरि राय जी (Shri Guru Harrai Ji) को गद्दी देने का विचार किया| वे श्री हरि राय जी से कखने लगे कि तुम गुरु घर कि रीति के अनुसार पिछली रात जागकर शौच स्नान करके आत्मज्ञान को धारण करके भक्ति मार्ग को ग्रहण करना|

बाबक रबाबी और मलिक जाती के परलोक सिधार जाने के कुछ समय बाद गुरु हरि गोबिंद जी (Shri Guru Hargobind Ji) ने अपने शरीर त्यागने का समय नजदीक अनुभव करके श्री हरि राये जी को गुरुगद्दी का विचार कर लिया| इस मकसद से आपने दूर – नजदीक सभी सिखों को करतारपुर पहुँचने के लिए पत्र लिखे|