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जहाँगीर ने श्री गुरु अर्जन देव जी (Shri Guru Arjun Dev Ji) को सन्देश भेजा| बादशाह का सन्देश पड़कर गुरु जी ने अपना अन्तिम समय नजदीक समझकर अपने दस-ग्यारह सपुत्र श्री हरिगोबिंद जी (Shri Guru Hargobind Ji) को गुरुत्व दे दिया| उन्होंने भाई बुड्डा जी, भाई गुरदास जी आदि बुद्धिमान सिखों को घर बाहर का काम सौंप दिया| इस प्रकार सारी संगत को धैर्य देकर गुरु जी अपने साथ पांच सिखों-

एक दिन श्री गुरु अर्जन देव जी का दीवान सजा था| उस दीवान में गुरु जी ने वचन किया कि शुभ कार्य करने अच्छे होते है|

जब दिन निकला तो चंदू फिर अपनी बात मनाने के लिए गुरु जी के पास पहुँचा| परन्तु गुरु जी ने फिर बात ना मानी| उसने गुरु जी से कहा कि आज आपको मृत गाए के कच्चे चमड़े में सिलवा दिया जाएगा| उसकी बात जैसे ही गुरु जी ने सुनी तो गुरु जी कहने लगे कि पहले हम रावी नदी में स्नान करना चाहते है, फिर जो आपकी इच्छा हो कर लेना|

जहाँगीर ने गुरु जी को सन्देश भेजा| बादशाह का सन्देश पड़कर गुरु जी ने अपना अन्तिम समय नजदीक समझकर अपने दस-ग्यारह सपुत्र श्री हरिगोबिंद जी को गुरुत्व दे दिया| उन्होंने भाई बुड्डा जी, भाई गुरदास जी आदि बुद्धिमान सिखों को घर बाहर का काम सौंप दिया| इस प्रकार सारी संगत को धैर्य देकर गुरु जी अपने साथ पांच सिखों-

आप अपने ननिहाल घर में ही पोषित और जवान हुए| इतिहास में लिखा है एक दिन आप अपने नाना श्री गुरु अमर दास जी (Shri Guru Amar Das ji) के पास खेल रहे थे तो गुरु नाना जी के पलंघ को आप पकड़कर खड़े हो गए| बीबी भानी जी आपको ऐसा देखकर पीछे हटाने लगी|

गुरु रामदास जी (Shri Guru Ramdas Ji) परिवार और सिख सेवको को यथा स्थान धैर्य व वाहिगुरु के हुकम में रहने की आज्ञा देकर भादव सुदी तीज संवत 1639 को आप शरीर त्यागकर परम ज्योति में विलीन हो गए| 

गुरु अमरदास जी (Shri Guru Amardas Ji) की दो बेटियां बीबी दानी व बीबी भानी जी थी| बीबी दानी जी का विवाह श्री रामा जी से और बीबी भानी जी का विवाह श्री जेठा जी (श्री गुरु रामदास जी) के साथ हुआ| दोनों ही संगत के साथ मिलकर खूब सेवा करते| गुरु जी दोनों पर ही खुश थे| इस कारण दोनों में से एक को गुरुगद्दी के योग्य निर्णित करने के लिए आपने उनकी परीक्षा ली| 

श्री गुरु रामदास जी (Shri Guru Ramdas Ji) का जन्म श्री हरिदास मल जी सोढी व माता दया कौर जी की पवित्र कोख से कार्तिक वदी 2 संवत 1561 को बाज़ार चूना मंडी लाहौर में हुआ| इनके बचपन का नाम जेठा जी था| बालपन में ही इनकी माता दया कौर जी का देहांत हो गया| जब आप सात वर्ष के हुए तो आप के पिता श्री हरिदास जी भी परलोक सिधार गए|