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उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ के खैर के गांव सूरजमल निवासी अमित को किडनी खराब होने का पता उस वक्त चला जब फौज की भर्ती में दौड़ के दौरान अचानक उसका बीपी बढ़ गया। जांच कराने पर पता चला कि उसकी दोनों किडनी खराब हो गई है। आर्थिक रूप से कमजोर अमित हो आॅपरेशन के लिए साढ़े आठ लाख रूपये की जरूरत थी। अमर उजाला-फाउंडेशन की पहल पर अमित को आर्थिक मदद की गयी। ये अभियान था किडनी ट्रांसप्लांट करा कर 20 वर्षीय युवा अमित की जिंदगी बचाने का। जिसमें अमर उजाला फाउंडेशन की अपील पर लोगों से सवा सात लाख रूपये की बड़ी मदद उसको मिली है। अमित का किडनी ट्रांसप्लांट 11 मार्च 2017 को दिल्ली के प्रतिष्ठित सर गंगाराम हास्पिटल में सफलतापूर्वक हुआ। अमित और उसे किडनी देने वाली उसकी मां अब पूरी तरह स्वस्थ हैं।  

मोहम्मद साहब के 12 दिसम्बर को तथा ईशु के 25 दिसम्बर जन्म के इस पवित्र माह में हम उनकी महान आत्मा को नमन करते हैं। इन दोनों महान आत्माओं ने भारी कष्ट सहकर अपना सारा जीवन लोक कल्याण के लिए जिया। मोहम्मद साहब ने कहा था कि हे खुदा, सारी खिल्कत को बरकत दे। अर्थात हे खुदा, सारे संसार का भला कर। उन्होंने यह भी कहा था कि गरीब का पसीना सुखने के पहले उसकी मजदूरी मिल जानी चाहिए। वहीं ईशु ने मानव जाति के लिए अपना बलिदान करके उनको सुली पर चढ़ाने वाले कठोर हृदय के लोगों में करूणा का सागर बहा दिया था। ईशु ने सुली चढ़ाने वालों के लिए प्रभु से उन्हें माफ कर देने की प्रार्थना की थी। हे प्रभु, ये अपराधी नहीं वरन् ये अज्ञानी है। प्रभु ने ईशु की प्रार्थना सुनकर सुली देने वालों को माफ कर दिया। वे सभी रो-रोकर कहने लगे कि हमने अपने रक्षक को ही सुली पर लटका दिया। ईशु का सन्देश है कि जो ईश्वर की राह पर ध्येयपूर्वक सहन करते हैं परमात्मा उनका इनाम बढ़ा देता है। आज संसार में सबसे अधिक लोग ईशु तथा मोहम्मद साहब को मानने वाले हैं। ईश्वर को मानव सेवा मंे जानना और मानव मात्र से प्यार करना मेरे जीवन का उद्देश्य है!

उनकी मां देत्रानी देवी एक साधारण गृहिणी थीं और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान पिता ब्रिटिश सेना में एक सिग्नल थे वह एक महान ऋषि द्वारा आशीर्वादित परिवार से आए थे।

एक बार की बात है| वीतराग स्वामी सर्वदानन्द जी बिहार के छपरा स्थान पर पहुँचे| उन्होंने देखा कि एक मंदिर के पुजारी बड़े प्रेम से हवन करा रहा था|

26 सितंबर, 1966 मुंबई के शुभ दिन, श्रीमती को जन्म दिया। रेखाबेन और श्री दिलीपभाई झावेरी, उन्होंने बहुत कम उम्र में देवत्व के लक्षण दिखाए।

डाॅ. भीमराव अम्बेडकर के परिनिर्वाण दिवस पर 6 दिसंबर को प्रदेश में सार्वजनिक अवकाश का ऐलान प्रदेश सरकार ने किया। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश में घोषित वार्षिक अवकाश 42 हो गए हैं। इन 42 वार्षिक अवकाशों में से 17 छुट्टियां ऐसी हैं जो जातीय आधार पर घोषित की गई हैं। प्रति छुट्टी होने वाले राजस्व के नुकसान का आकलन भी अब तक किसी ने नहीं किया। शायद वजह राजनीतिक ही है। राजनीतिक जानकारों के अनुसार, जातियों के आधार पर चल रही उत्तर प्रदेश में छुट्टियों की घोषणा सरकारें हथियार की तरह करती रही हैं। नवभारत टाइम्स में प्रकाशित एक समाचार एक अनुसार हर जाति को खुश करने के लिए समय-समय पर छुट्टियां घोषित होती रहती हैं और इसका नुकसान आम जनता को होता है। इससे न केवल सरकारी कामकाज ठप होता है बल्कि प्रदेश की अर्थ व्यवस्था पर भी असर दिखता है। अंततः इसकी भरपाई जनता अपनी जेब से करती है। 

एक दिन एक महात्मा मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त के प्रधानमंत्री आचार्य चाणक्य (या विष्णुगुप्त) के घर पधारे| भोजन की बेला थी| अतिथि से आचार्य ने निवेदन किया कि वह उनके साथ भोजन करें|

पिछले दिनों देश में बूढ़ी-प्रौढ़ों को पढ़ाने का आंदोलन काफी चला| एक गाँव में चल रहे प्रौढ़ शिक्षा केंद्र को देखने जब एक निरीक्षक दल पहुँचा, तब दरवाजे पर मुख्य निरीक्षक को 94 साल के वृद्ध सज्जन मिले|

उत्तर प्रदेश के शामली के जैन मोहल्ला निवासी श्री नीरज गोयल वर्ष 2010 में मुंडेट कलां प्राथमिक विद्यालय नंबर एक में बतौर सहायक अध्यापक नियुक्त हुए। प्राथमिक सरकारी स्कूल का नाम सुनते ही जेहन में शिक्षा के नाम खानापूरी का विचार आता है। मिड डे मील और वजीफे के बीच शिक्षा की बदहाली सामने आती है। शिक्षा को इस बदहाली से निकालने के लिए श्री नीरज गोयल अब शामली के मोहल्ला बरखंडी स्थित प्राथमिक विद्यालय नंबर दस के प्रधानाध्यापक के रूप में इस प्रवृत्ति के खिलाफ लड़ रहे हैं। उनके स्कूल में छात्र संख्या के नाम पर खानापूरी नहीं होती है। वह अभिभावकों को प्रेरित करते हैं और शिक्षा की गुणवत्ता बनाने के लिए भरसक प्रयास करते हैं। गरीब परिवार के बच्चों को स्कूल तक लाने के लिए उन्होंने अभियान चला रखा है। उन्होंने मोहल्ला चैपाल नामांकन भ्रमण के नाम से कार्यक्रम चलाया। स्कूल की छुट्टी के बाद नीरज गोयल मोहल्लों में पहुंचते और वहां ठेले वाले, सब्जी बेचने वाले, रिक्शा चलाकर गुजर बसर करने वाले परिवारों के बीच जाकर बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित करते हैं। रात में मोहल्लों में बैठक कर उन्हें शिक्षा का महत्व बताते हैं। इसी का असर है कि विद्यालय में नामांकन 300 हुआ और ज्यादातर बच्चे रोज स्कूल भी आते हैं। वह बच्चों को हर कदम पर अपनेपन का अहसास कराते हैं। ताकि उन्हें किसी तरह की कोई कमी महसूस न हो।