Homeअतिथि पोस्टदेश में ज्यादा छुट्टियों का मतलब आम आदमी का ज्यादा नुकसान (सबसे ज्यादा नुकसान बच्चों की शिक्षा का हो रहा है)

देश में ज्यादा छुट्टियों का मतलब आम आदमी का ज्यादा नुकसान (सबसे ज्यादा नुकसान बच्चों की शिक्षा का हो रहा है)

देश में ज्यादा छुट्टियों का मतलब आम आदमी का ज्यादा नुकसान (सबसे ज्यादा नुकसान बच्चों की शिक्षा का हो रहा है)

डाॅ. भीमराव अम्बेडकर के परिनिर्वाण दिवस पर 6 दिसंबर को प्रदेश में सार्वजनिक अवकाश का ऐलान प्रदेश सरकार ने किया। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश में घोषित वार्षिक अवकाश 42 हो गए हैं। इन 42 वार्षिक अवकाशों में से 17 छुट्टियां ऐसी हैं जो जातीय आधार पर घोषित की गई हैं। प्रति छुट्टी होने वाले राजस्व के नुकसान का आकलन भी अब तक किसी ने नहीं किया। शायद वजह राजनीतिक ही है। राजनीतिक जानकारों के अनुसार, जातियों के आधार पर चल रही उत्तर प्रदेश में छुट्टियों की घोषणा सरकारें हथियार की तरह करती रही हैं। नवभारत टाइम्स में प्रकाशित एक समाचार एक अनुसार हर जाति को खुश करने के लिए समय-समय पर छुट्टियां घोषित होती रहती हैं और इसका नुकसान आम जनता को होता है। इससे न केवल सरकारी कामकाज ठप होता है बल्कि प्रदेश की अर्थ व्यवस्था पर भी असर दिखता है। अंततः इसकी भरपाई जनता अपनी जेब से करती है। 

लखनऊ यूनिवर्सिटी में पाॅलिटिकल साइंस के प्रो. एसके द्विवेदी के अनुसार, मंडल कमीशन के बाद से जातीय आधार पर छुट्टियों का चलन बढ़ा है। ऐसी छुट्टियां संबंधित महापुरूष के प्रति श्रद्धा के बजाए उसके वर्ग के वोटबैंक को देखकर घोषित की जाती हैं। इसके जरिए राजनीतिक दल वोटर को मनोवैज्ञानिक रूप से लुभाने की कोशिश करते हैं। राजनेताओं को स्वयं बिना अवकाश लिये रात-दिन कार्य करके देश को आगे बढ़ाने का संकल्प लेना चाहिए। अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बिना छुट्टी तथा वेतन लिए कार्य करने के घोषणा की है। ब्रिटेन के विश्वविख्यात राजनेता चर्चिल बिना छुट्टी लिए रोजाना 18 घण्टे कार्य करते थे। अम्बेडकर जी ने अपना पूरा जीवन लोक कल्याण के लिए खपा दिया। हम अज्ञानतावश संसार के उन 99.99 प्रतिशत व्यक्तियों की तरह बन रहे हैं जिनका जीवन तीन शब्दों में खत्म हो जाता है – वे जन्मे, जिए और मर गए। अपनी नौकरी या व्यवसाय में हम ईमानदारी से जितनी ऊर्जा खर्च करते हैं उतनी हमारी ऊर्जा बढ़ती है। अन्यथा व्यर्थ के कार्य में ऊर्जा नष्ट हो जाती है। नौकरी या व्यवसाय एक निश्चित लक्ष्य है अपनी ऊर्जा का सदुपयोग करने का।

अर्थशास्त्री प्रो. मनोज अग्रवाल का मानना है कि छुट्टियों के नुकसान का आकलन केवल आर्थिक पहलू पर नहीं किया जा सकता। इसके सामाजिक पहलू भी हैं। छुट्टियों से तमाम सरकारी विभागों से जनता को मिलने वाली राहत रूकती है। वही पीएचडी चैंबर के क्षेत्रीय निदेशक श्री आर.क.े शरण के अनुसार हमारे देश में छुट्टियों को लेकर कोई नीति नहीं है। विदेश में वकिंग डेज के आउटपुट तय हैं। यहां ऐसा नहीं है। उत्तर प्रदेश की हिस्सेदारी देश की जीडीपी में 7-8 प्रतिशत है। यहां ज्यादा छुट्टियों का मतलब ज्यादा नुकसान है। सरकार को आवश्यक छुट्टियों में जरूरी कार्यों को ओवरटाइम देकर पूरा करने की समझदारी दिखाना चाहिए। इसे कर्मचारियों को भी अवकाश के अतिरिक्त दिवस पर कार्य करने का अतिरिक्त लाभ होगा। उस कर्मचारी के परिवार की आय में वृद्धि होगी। लोक हित के प्रत्येक कार्य को अनिवार्य सेवाओं की श्रेणी में रखा जाना चाहिए। सरकारी सेवाओं में 60 वर्ष के बाद व्यक्ति अवकाश ग्रहण कर लेता है। सरकार को ऐसी योजना बनानी चाहिए कि ईमानदार, स्वस्थ तथा अनुभवी व्यक्ति की कार्यक्षमता लाभ एडहाॅक बेसिस पर लिया जा सके। प्रायः देखा जाता है कि अवकाश ग्रहण करने के बाद अति रचनात्मक व्यक्ति भी निष्क्रय होकर दिन काटने लगता है। जिसका असर उसके स्वास्थ्य तथा उम्र घटने पर पड़ता है। मनुष्य जन्म को सार्थक बनाना है।

सबसे बड़ा नुकसान आये दिन घोषित होने वाली छुट्टियों से बच्चों की पढ़ाई का होता है। नियमित पढ़ाई न होने से बच्चों के लिए वह बोझ बन जाती है। प्रतिस्पर्धा के युग में अभिभावकों तथा स्कूलों की प्रत्येक बालक से अच्छे रिजल्ट की अत्यधिक उम्मीद रहती है। इससे बच्चे तनावग्रस्त हो जाते हैं। आये दिन शहरों के अच्छे स्कूलों के बच्चों की आत्महत्या तक की खबरें आती रहती हैं। ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों में स्थित सरकारी स्कूलों में अधिक छुट्टियों के कारण बच्चों का जीवन अन्धकारमय हो रहा है। बड़े राजनेताओं के बच्चे तो ट्यूशन या विदेश में पढ़कर अच्छी शिक्षा प्राप्त कर लेते हैं। राजनेताओं को आम लोगों के बच्चों के भविष्य के बारे में संवेदनशील होकर विचार करना चाहिए। ब्राह्मण, क्षत्रिय, पिछड़ा वर्ग, वैश्य, अल्पसंख्यक, सिंधी, दलित, पूर्वांचल, जाट आदि जातियों के आधार पर छुट्टियां घोषित करने के प्रचलन पर संवैघानिक तरीके से रोक लगानी चाहिए। महापुरूषों ने अपना पूरा जीवन लोक हित के लिए खपा दिया। उन महापुरूषों के नाम पर छुट्टी करके हम देश-प्रदेश के आम आदमी पर आर्थिक तथा सामाजिक बोझ बढ़ा रहे हैं। यह एक प्रकार से देश को हानि पहुंचाना ही माना जायेगा।

हमारा देश में अनेक समस्याओं हैं उसके समाधान खोजने तथा त्वरित कार्यवाही के लिए हमें रात-दिन कार्य करके देश को विकसित देशों की सूची में स्थापित करना है। सारे विश्व से आतंकवाद तथा युद्धों को समाप्त करना है। इस लक्ष्य को शीघ्र प्राप्त करने के लिए गुणात्मक शिक्षा, विकास, त्वरित न्याय, चिकित्सा, रोजगार, समृद्धि को एक-एक घर के दरवाजे तक पहुंचाना होगा। अर्थात वर्ष के 365 दिनों रात-दिन एक मानवीय अभियान की भांति निरन्तर कार्य होना चाहिए। देश से गरीबी दूर करने के लिए सरकारी मशीन को अवकाश करके आये-दिन बंद रखा जाता है। सरकारों को समझना चाहिए कि सत्ता हासिल करने के मात्र प्रदर्शन प्रभाव तथा दिखावे से लोकप्रियता हासिल करने के कोई मायने नहीं है वरन् समाजोपयोगी तथा जनहितैषी कार्यों से लोकप्रियता हासिल करनी चाहिए। अब सत्ता पाने की भूख के दिन लद गये हैं। युवा पीढ़ी अब इण्टरनेट के युग में जी रही है। ये पब्लिक है यह सब जानती है। अब देश के नेता 125 करोड़ जनता है। अब पब्लिक की राय लेकर अवकाश करने का समय आ गया है। जाति-धर्म की राजनीति अब बन्द होनी चाहिए। पं. श्रीराम शर्मा ने कहा था कि व्यक्ति कार्य से नहीं थकता वरन् कार्य को बोझ समझकर करने से थकता है।

लखनऊ में मेट्रो के निर्माण में ठण्ड के मौसम में खुले में इंजीनियर, सुपरवाइजर तथा मजदूर रात-दिन कार्य करके इस महायोजना को जल्द से जल्द से सफल बनाने में लगे हैं। सेना के जवान सीमाओं पर 24 घण्टे चैकसी का कार्य करके हम देशवासियों को सुख की नींद की सुविधा उपलब्ध कराते हैं। कलम के सिपाही रात-दिन कार्य करके हमें देश-दुनिया की ताजा खबरों खबरों से हर पल अवगत कराते हैं। होना यह चाहिए सभी सरकारी कार्यालयों तथा कारखानों में तीन शिफ्टों में कार्य करके देश के विकास के पहिये को गति देनी चाहिए। इस प्रकार एक ही कार्यालय/कार्य स्थल में तीन शिफ््टों में अधिक कार्यों का शीघ्र निस्तारण होगा। तीन शिफ्टों में कर्मचारियों से काम लेने से नये पद सर्जित होगे जिससे बेरोजगारी की समस्या भी हल होगी। आम जनता को अपने कार्य का तुरन्त परिणाम मिलेगा। नौकरी या व्यवसाय के द्वारा ही आत्मा का विकास का एकमात्र एवं सरल उपाय है। मानव जीवन का उद्देश्य ही अपनी आत्मा का विकास है। इस विचार से सर्वोत्तम सेवा का सुन्दर वातावरण बनेगा। इण्टरनेट के युग में आज रात-दिन घर बैठे आफिस का कार्य हो रहा है। लेपटाॅप के माध्यम से 24 घन्टे हम संसार के किसी भी स्थान पर बैठ कर हम अपने कार्य का संचालन कर सकते हैं।

ताजा विश्व भूख सूचकांक या ग्लोबल हंगर इंडेक्स (जीएचआई) के अनुसार भारत की स्थिति अपने पड़ोसी मुल्क नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका और चीन से बदतर है। यह सूचकांक हर साल अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान जारी करता है, जिससे दुनिया के विभित्र देशों में भूख और कुपोषण की स्थिति का अंदाजा लगता है। आज केवल इक्कीस देशों में हालात हमसे बुरे हैं। विकासशील देशों की बात जाने दें, हमारे देश के हालात तो अफ्रीका के घोर गरीब राष्ट्र नाइजर, चाड, सिएरा लिओन से भी गए गुजरे हैं। पूरी दुनिया में भूख के मोर्चे पर पिछले पंद्रह बरसों के दौरान उनत्तीस फीसद सुधार आया है, लेकिन हंगर इंडेक्स में भारत और नीचे खिसक गया है। सन् 2008 में वह 83वें नंबर पर था, वर्ष 2016 आते-आते 97वें स्थान पर आ गया। तब जीएचआइ में कुल 96 देश थे, जबकि अब उनकी संख्या बढ़ कर 118 हो गई है।

हमारा देश 125 करोड़ लोगों का बहुत बड़ा तथा गरीब देश है। देश के करोड़ों लोग भूखे तथा बेरोजगार हैं। प्रत्येक वोटर को वोटरशिप के नाम पर बिना गरीब तथा अमीर का भेदभाव किये न्यूनतम आय सुनिश्चित की जानी चाहिए। इस बारे में यदि हमारे देश में इस तरह का समय रहते जनमत कराके यह जानना चाहिए कि आम जनता की क्या राय है? देश के असली मालिक वोटर तथा उसके परिवार को भी स्वाभिमान के साथ जीने का अधिकार है। वोटरशिप की न्यूनतम आय की इस धनराशि को गरीब तथा अमीर दोनों को स्वाभिमान के साथ लेना अनिवार्य किया जाना चाहिए। वोटर को गरीब की श्रेणी में रखकर उसे तथा उसके परिवार को किसी भी प्रकार की सहायता देना उसके स्वाभिमान को ठेस पहंुचाना तथा उसे सामाजिक रूप से कमजोर करना है। लोगों के आम जरूरत की एक-एक चीज देकर रोजाना अखबारों में फोटो छपवाने की छिपी भावना अब जनता समझ रही है। जनता को गरीब की श्रेणी में रखकर कोई सुविधा देना ठीक नहीं है। वोटर अब अपने वोट से सरकार बनाने की फीस देश की राष्ट्रीय आय से अपना अंश चाहती है। देश की राष्ट्रीय आय आम जनता के रात-दिन कार्य करने से बढ़ती या कार्य न करने से घटती है। इसे बढ़ाने के लिए प्रत्येक नागरिक और अधिक मेहनत तभी करेगा जब उसके खाते में उस लाभ का कुछ अंश प्रतिमाह पहंुचेगा। सरकार की सुविधाओं को लाभ प्रत्येक वोटर को मिलना चाहिए। केवल सरकारी कर्मचारियों को वेतन, मंहगाई भत्ता ही क्यों मिले क्या मंहगाई का असर सभी पर बराबरी से नहीं पड़ता?

विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र सबसे बड़ी पंचायत संसद तथा प्रदेश की विधानसभाओं में बहस की जगह समाधानपरक परामर्श होना चाहिए। जनता के प्रतिनिधियों को वेतन-भत्ता इसलिए दिया जाता है कि वह देश हित में कार्य करें। जनता के खून-पसीने के टैक्स के पैसों से चलने वाली सरकार तथा उनके माननीय प्रतिनिधियों को उसकी खून-पसीने की कीमत ईमानदारी से चुकानी चाहिए। लोकतंत्र की सुन्दरता इसी में है कि समस्या का समाधान निकलकर आये। देश की जनता को लम्बी और उबा देने वाली बयानबाजी में नहीं उलझाना चाहिए। जनता जन हितैषी समाधान तथा विकास चाहती है। यदि माननीय जन प्रतिनिधि ऐसा नहीं करते हैं तो वे स्वयं देश के लिए सबसे बड़ी समस्या हैं। अब देश की जनता अच्छी तरह सरकार चलाने के लिए दूसरा विकल्प भी निकालना जानती है। संसद के लिए ‘‘कार्य के बदले वेतन’’ का कानून बनाने के लिए जनता को विवश न किया जाये।  जिस दिन संसद ठप्प होगी उस दिन का वेतन-भत्ता काटे जाने का कानून बनना चाहिए। देश तथा प्रदेश के लिए कानून बनाने वाले माननीय सांसद तथा विधायक समाज के सामने आदर्श प्रस्तुत करें। सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश की संसद की कार्यवाही का असर देश में ही नहीं वरन् सारे विश्व में बड़े स्तर पर होता है।

संसद आये दिन ठप रखा जाता है। यह एक प्रकार संसद की छुट्टी करने के समान ही है। संसद में चल रहे गतिरोध के बीच सरकार ने कहा है कि विपक्ष जनहित के लंबित विधेयकों को पास कराने में मदद करे। सरकार का कहना है कि इन विधेयकों को मंजूरी न मिलने से एक बड़े वर्ग को राहत नहीं मिल पा रही हंै। संसदीय कार्य मंत्री अनंत कुमार ने कहा कि दिव्यांग बिल, मैटरनिटी बिल, कर्मचारी मुआवजा और एचआईवी बिल जैसे कई विधेयक हैं, जो पेंडिंग हैं। अगर यह बिल पारित होते हैं, तो इससे न सिर्फ महिलाओं बल्कि दिव्यांगों को भी फायदा मिलेगा। कल करे सो आज कर, आज करे सो अब, पल में परलय होगी भोरी करेगा कब? अभी नहीं तो कभी नहीं। आज का होम वर्क बच्चे आज ही कर लेते है। यहीं नियम माननीयों के ऊपर भी अब लागू होना चाहिए। न्यायालय को अब अपनी चारदिवारी से बाहर निकल कर स्वयं आम आदमी की पीड़ा को हल करने उसके दरवाजे पर पहुंचना होगा। न्यायालय को इस बात का इंतजार नहीं करना चाहिए कि पीड़ित स्चयं शिकायत लेकर न्यायालय आये। यही सच्चा, न्यायप्रिय तथा लोकप्रिय लोकतंत्र की सुन्दरता है।

प्रदीप कुमार सिंह, शैक्षिक एवं वैश्विक चिन्तक
पता– बी-901, आशीर्वाद, उद्यान-2
एल्डिको, रायबरेली रोड, लखनऊ-226025
मो. 9839423719

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