लग्न

लग्न

पिछले दिनों देश में बूढ़ी-प्रौढ़ों को पढ़ाने का आंदोलन काफी चला| एक गाँव में चल रहे प्रौढ़ शिक्षा केंद्र को देखने जब एक निरीक्षक दल पहुँचा, तब दरवाजे पर मुख्य निरीक्षक को 94 साल के वृद्ध सज्जन मिले|

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उन बूढ़े बाबा ने इंस्पेक्टर से हाथ जोड़कर कहा- “भाई जी, क्या आप मुझे पढ़ाने का भी प्रबंध कर सकते हैं?” दल के मुखिया ने कहा- “बाबा, आपको हम सब क्या पढ़ा सकते हैं|

आप अनुभवी हैं, गुणी है, आपके पास अपने अनुभवों का भरपूर खजाना है| चाहे तो आप ही हमें बहुत कुछ सिखा सकते हैं|” बाबा ने उत्तर दिया- “यह ठीक है, परंतु असली विधा की बात ही कुछ और है| मैं पाँच बीसी से छह साल कम का हूँ| मैं चार साल से पहले नहीं मरूँगा| मैं चाहता हूँ, इस उम्र में कुछ पढ़ लूँ जिससे रामायण स्वयं पढ़ लूँ, मैं फिर शरीर छोड़ना चाहता हूँ|”

मुख्य निरक्षण बोले- “बाबा! चौरानवें वर्ष में भी आपमें इतनी लगन है तो आप अवश्य पढ़ लेंगे, पर सवाल है, इस उम्र में आपको लगन कैसे पैदा हुई?” बाबा ने उत्तर दिया- “बेटा, मेरा लड़का अच्छा पढ़ा-लिखा है, पोता भी पढ़लिखकर काम पर लग गया है| जब इन सब बच्चों को पढ़ाने को कहता हूँ तब वह हँस पड़ते हैं, टाल जाते हैं| आप ही यह पुण्य-कार्य करवा देंगे तो भगवान् आपका भला करेंगे, मेरा संकल्प भी पूरा हो जाएगा| भगवान् का उपदेश स्वयं पोथी से बाँचते-बाँचते यह देह का चोला छोड़ना चाहता हूँ|”

केंद्र के शिक्षक और छात्र उन बूढ़े बाबा की लगन देखकर आश्चर्य में पड़ गए| प्रत्येक मनुष्य को हर काम के प्रति इतनी ही लगन होनी चाहिए|