Chapter 300
“Karna said, ‘As thou, O lord of splendour, knowest me for thyworshipper, so also thou knowest that there is nothing which I cannotgive away in charity,
“Karna said, ‘As thou, O lord of splendour, knowest me for thyworshipper, so also thou knowest that there is nothing which I cannotgive away in charity,
माता विन्ध्येश्वरी रूप भी माता का एक भक्त वत्सल रूप है और कहा जाता है कि यदि कोई भी भक्त थोड़ी सी भी श्रद्धा से माँ कि आराधना करता है तो माँ उसे भुक्ति – मुक्ति सहज ही प्रदान कर देती हैं । विन्ध्येश्वरी चालीसा का संग्रह किया गया है।
बच्चे उसे मंदबुद्धि कहकर चिढ़ाते थे। एक दिन वह कुएं के पास बैठा था, तभी उसकी नजर पत्थर पर पड़े निशान की ओर गई। उसने सोचा – जब कठोर पत्थर पर निशान बन सकते हैं तो मुझे भी विद्या आ सकती है।
कहिबे कहं रसना रची सुनिबे कहं किये कान|
धरिबे कहं चित हित सहित परमारथहि सुजान||
Vaishampayana said: “Then Shakra, causing the firmament and the Earth tobe filled by a loud sound, came to the son of Pritha on a car and askedhim to ascend it.
“Sauti said, ‘the god of fire enraged at the curse of Bhrigu, thusaddressed the Rishi, ‘What meaneth this rashness, O Brahmana, that thouhast displayed towards me? What transgression can be imputed to me whowas labouring to do justice and speak the truth impartially?
युद्ध के नौ दिन व्यतीत हो चुके थे| अनेक वीर अपने प्राण न्योछावर कर चुके थे| अभी ऐसा प्रतीत होता कि पांडवों की विजय होगी तो कभी लगता था कि कौरव अधिक शक्तिशाली थे|
“Dhritarashtra said, ‘Describe to me the battle of Arjuna with thesamsaptakas, and of the other kings with the Pandavas. Narrate to mealso, O Sanjaya, the battle of Arjuna with Ashvatthama, and of the otherlords of the Earth with Partha.’