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माता विन्ध्येश्वरी रूप भी माता का एक भक्त वत्सल रूप है और कहा जाता है कि यदि कोई भी भक्त थोड़ी सी भी श्रद्धा से माँ कि आराधना करता है तो माँ उसे भुक्ति – मुक्ति सहज ही प्रदान कर देती हैं । विन्ध्येश्वरी चालीसा का संग्रह किया गया है।

बच्चे उसे मंदबुद्धि कहकर चिढ़ाते थे। एक दिन वह कुएं के पास बैठा था, तभी उसकी नजर पत्थर पर पड़े निशान की ओर गई। उसने सोचा – जब कठोर पत्थर पर निशान बन सकते हैं तो मुझे भी विद्या आ सकती है।

कहिबे कहं रसना रची सुनिबे कहं किये कान|
धरिबे कहं चित हित सहित परमारथहि सुजान||

युद्ध के नौ दिन व्यतीत हो चुके थे| अनेक वीर अपने प्राण न्योछावर कर चुके थे| अभी ऐसा प्रतीत होता कि पांडवों की विजय होगी तो कभी लगता था कि कौरव अधिक शक्तिशाली थे|