Home2011November (Page 7)

एक वृक्ष पर बहुत से कबूतर रहते थे| एक दिन प्रातःकाल कबूतर भोजन की तलाश में उड़े| उड़ते-उड़ते उनकी दृष्टि एक जगह बिखरे हुए दानों पर पड़ी|

एक बार हस्तिनापुर के महाराज प्रतीप गंगा के किनारे तपस्या कर रहे थे। उनके रूप-सौन्दर्य से मोहित हो कर देवी गंगा उनकी दाहिनी जाँघ पर आकर बैठ गईं। महाराज यह देख कर आश्चर्य में पड़ गये तब गंगा ने कहा, “हे राजन्! मैं जह्नु ऋषि की पुत्री गंगा हूँ* और आपसे विवाह करने की अभिलाषा ले कर आपके पास आई हूँ।” इस पर महाराज प्रतीप बोले, “गंगे! तुम मेरी दहिनी जाँघ पर बैठी हो। पत्नी को तो वामांगी होना चाहिये, दाहिनी जाँघ तो पुत्र का प्रतीक है अतः मैं तुम्हें अपने पुत्रवधू के रूप में स्वीकार करता हूँ।” यह सुन कर गंगा वहाँ से चली गईं।

एक धोबी के पास एक बूढ़ा-सा मरियल गधा था| गधा रोज सवेरे मैले कपड़ो की गठरी लेकर घाट जाता और शाम को धुले कपड़ो को लादकर घर लाता था| रात होने पर उसे घुमने की छुट्टी मिल जाती थी| एक बार घुमते-फिरते उसकी भेंट एक गीदड़ से हुई| दोनों दोस्त बन गये| अब दोनों भोजन की तलाश में साथ-साथ घूमने लगे|