Home2011September (Page 12)

एक सेठ थे| उनके पास लाखों रुपए की संपत्ति थी| बड़े हवेली थी, देश-विदेश में फैला कारोबार था, तिजोरियां में बंद पैसा था| एक दिन एक महानुभाव उनसे मिलने आए| बातचीत में उन्होंने कहा – “सेठजी, अब तो महंगाई बेहिसाब बढ़ गई है| चीजों के दाम दुगने हो गए हैं| आपकी संपत्ति भी बढ़कर अब करोड़ों रुपए की हो गई है|”

1 [गुरु] चतुर्विधानि भूतानि सथावराणि चराणि च
अव्यक्तप्रभवान्य आहुर अव्यक्तनिधनानि च
अव्यक्तनिधनं विद्याद अव्यक्तात्मात्मकं मनः

एक दिन एक भूखे सियार का एक सिहं से सामना हो गया| सिहं को देखकर सियार की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई| उसने किसी तरह डरते-डरते कहा, ‘हे जंगल के राजा| मुझे अपनी शरण में ले लो| मैं आपकी हर आज्ञा मानूँगा|’