अध्याय 94
1 [ज]
यज्ञे सक्ता नृपतयस तपः सक्ता महर्षयः
शान्ति वयवसिता विप्राः शमॊ दम इति परभॊ
एक सेठ थे| उनके पास लाखों रुपए की संपत्ति थी| बड़े हवेली थी, देश-विदेश में फैला कारोबार था, तिजोरियां में बंद पैसा था| एक दिन एक महानुभाव उनसे मिलने आए| बातचीत में उन्होंने कहा – “सेठजी, अब तो महंगाई बेहिसाब बढ़ गई है| चीजों के दाम दुगने हो गए हैं| आपकी संपत्ति भी बढ़कर अब करोड़ों रुपए की हो गई है|”
1 [गुरु]
चतुर्विधानि भूतानि सथावराणि चराणि च
अव्यक्तप्रभवान्य आहुर अव्यक्तनिधनानि च
अव्यक्तनिधनं विद्याद अव्यक्तात्मात्मकं मनः
“Yudhishthira said, ‘I ask, O chief of Bharata’s race, what is the originof the saying, about discharging all duties jointly at the time of aperson’s taking the hand of his spouse in marriage?
एक दिन एक भूखे सियार का एक सिहं से सामना हो गया| सिहं को देखकर सियार की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई| उसने किसी तरह डरते-डरते कहा, ‘हे जंगल के राजा| मुझे अपनी शरण में ले लो| मैं आपकी हर आज्ञा मानूँगा|’
“Yudhishthira said, ‘O grandsire, O thou of virtuous soul, what, indeed,is said to be productive of great merit[458] for a person attentivelyengaged in the study of the Vedas and desirous of acquiring virtue?
“Dhritarashtra said,–‘Tell me truly, O Sanjaya, the names of all theVarshas, and of all the mountains, and also of all those that dwell onthose mountains.
“Bhishma said, ‘Drona’s son observeth well, and Kripa, too observethrightly. As for Kama, it is only out of regard for the duties of theKshatriya order that he desireth to fight.