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महावीर स्वामी तपस्या में लीन थे। एक दुष्ट उनके पीछे लग गया। कई बार उसने महावीर स्वामी का अपमान किया, लेकिन वे सदैव शांत ही रहते। उन्होंने तो संसार को प्रेम का पाठ पढ़ाया था। वे कहते थे सदा प्रेम करो, प्रेम में ही परमतत्व छिपा है। जो तुम्हारा अहित करे उसे भी प्रेम करो।

अठारह-दिवसीय युद्ध समाप्त हो चूका था| पांडव धृतराष्ट्र के पास गए और उनके चरणों पर गिरकर क्षमा माँगी| धृतराष्ट्र ने युधिष्ठिर को गले लगा लिया, फिर भीम को बुलाया| भीम के महाराज के पास पहुंचने से पूर्व ही कृष्ण ने शीघ्रता से मनुष्य के आकार का एक लोहे का पुतला, जन्म से अंधे पर अत्यधिक शक्तिशाली, धृतराष्ट्र के हाथों में पकड़ा दिया|