अध्याय 124
1 [य]
सत सत्रीणां समुदाचारं सव धर्मभृतां वर
शरॊतुम इच्छाम्य अहं तवत्तस तं मे बरूहि पितामह
1 [य]
सत सत्रीणां समुदाचारं सव धर्मभृतां वर
शरॊतुम इच्छाम्य अहं तवत्तस तं मे बरूहि पितामह
1 [ईन्द्र]
सर्वाणि कर्माणि समाप्य राजन; गृहान परित्यज्य वनं गतॊ ऽसि
तत तवां पृच्छामि नहुषस्य पुत्र; केनासि तुल्यस तपसा ययाते
सेठ धर्मदास धार्मिक प्रवृति का व्यक्ति था| बड़े-बड़े महात्मा और ज्ञानी पुरषों के संपर्क में रहने के कारण एक महात्मा ने सेठ से कहा, ‘सेठजी आप दानी होने के साथ-साथ काफ़ी धनवान भी है| अतः आप एक मंदिर बनवा दे, जिससे आपको पुण्य लाभ मिलेगा|’
Sanjaya said, “During the progress, O king, of that fierce battle fraughtwith the slaughter of great heroes, Sakuni the glorious son of Suvala,rushed against the Pandavas.
“Janamejaya said, ‘Having seen his sons and grandsons with all theirfriends and followers, what, indeed, did that ruler of men, viz.,Dhritarashtra, and king Yudhishthira also, do?’
“Sauti said, ‘The snake-sacrifice then commenced according to due form.And the sacrificial priests, competent in their respective dutiesaccording to the ordinance, clad in black garments and their eyes redfrom contact with smoke, poured clarified butter into the blazing fire,uttering the appropriate mantras.
एक राजा और नगर सेठ में गहरी मित्रता थी। वे रोज एक दूसरे से मिले बिना नहीं रह पाते थे। नगर सेठ चंदन की लकड़ी का व्यापार करता था।
Vaisampayana continued, “Then all the artisans, the principalcounsellors, and the highly wise Vidura said unto Dhritarashtra’s son,”All the preparations for the excellent sacrifice have been made, O king;and the time also hath come, O Bharata.
साधारण ज्वर अनेक कारणों से होता है| यह हर किसी को हो सकता है| शरीर का तापक्रम 98.4 फोरनहाइट माना गया है| यदि शरीर का तापक्रम इससे अधिक हो जाता है तो ज्वर की हालत मान ली जाती है|