अध्याय 93
1 कथं धर्मे सथातुम इच्छन राजा वर्तेत धार्मिकः
पृच्छामि तवा कुरुश्रेष्ठ तन मे बरूहि पिता मह
1 कथं धर्मे सथातुम इच्छन राजा वर्तेत धार्मिकः
पृच्छामि तवा कुरुश्रेष्ठ तन मे बरूहि पिता मह
“Yudhishthira said, ‘By what means doth a man become sinful, by what dothhe achieve virtue, by what doth he attain to Renunciation, and by whatdoth he win Emancipation?’
एंडी और मैंडी बहुत पक्के मित्र थे | वे बचपन से ही स्कूल में साथ पढ़े थे | जब वे युवा हुए तो उन्होंने तय किया कि वे दोनों अपना व्यापार भी एक साथ करेंगे |
1 [धृ]
चक्षुष्मतां वै सपृहयामि संजय; दरक्ष्यन्ति ये वासुदेवं समीपे
विभ्राजमानं वपुषा परेण; परकाशयन्तं पर्दिशॊ दिशश च
“Vaisampayana said, ‘Yayati, then, overcome with decrepitude, returned tohis capital and summoning his eldest son Yadu who was also the mostaccomplished, addressed him thus, ‘Dear child, from the curse of Kavyacalled also Usanas, decrepitude and wrinkles and whiteness of hair havecome over me. But I have not been gratified yet with the enjoyment ofyouth.
“Sanjaya said,–‘Stringing then his large bow and reverentially salutingthe grandsire, Arjuna, with eyes filled with tears, said these words, Oforemost one among the Kurus,
“The lady replied, ‘I am a daughter of Prajapati (the lord of allcreatures, Brahma) and my name is Devasena. My sister Daityasena has erethis been ravished by Kesin.
एक संत ने एक रात स्वप्न देखा कि उनके पास एक देवदूत आया है। देवदूत के हाथ में एक सूची है। उसने कहा, ‘यह उन लोगों की सूची है, जो प्रभु से प्रेम करते हैं।’ संत ने कहा, ‘मैं भी प्रभु से प्रेम करता हूं। मेरा नाम तो इसमें अवश्य होगा।’ देवदूत बोला, ‘नहीं, इसमें आप का नाम नहीं है।’