महाराज परिक्षित्
अभिमन्युकी पत्नी उत्तरा गर्भवती थी| उसके उदरमें पाण्डवोंका एकमात्र वंशधर पल रहा था| अश्वत्थामाने उस गर्भस्थ बालकका विनाश करनेके लिये ब्रह्मास्त्रका प्रयोग किया|
अभिमन्युकी पत्नी उत्तरा गर्भवती थी| उसके उदरमें पाण्डवोंका एकमात्र वंशधर पल रहा था| अश्वत्थामाने उस गर्भस्थ बालकका विनाश करनेके लिये ब्रह्मास्त्रका प्रयोग किया|
स्वाद में खट्टा-मीठा आलूबुखारा गर्मियों में आने वाला मौसमी फल है. इसमें बॉडी के लिए जरूरी पोषक तत्व जैसे मिनरल्स और विटामिन भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं| इसके फल को भी अलूचा या प्लम कहते हैं। फल, लीची के बराबर या कुछ बड़ा होता है और छिलका नरम तथा साधरणत: गाढ़े बैंगनी रंग का होता है। गूदा पीला और खटमिट्ठे स्वाद का होता है।
पृथु एक सूर्यवंशी राजा थे, जो वेन के पुत्र थे। वाल्मीकि रामायण में इन्हें अनरण्य का पुत्र तथा त्रिशंकु का पिता कहा गया है। ये भगवान विष्णु के अंशावतार थे। स्वयंभुव मनु के वंशज अंग नामक प्रजापति का विवाह मृत्यु की मानसी पुत्री सुनीथा से हुआ था।
दिल्ली में देवीदास नामक एक व्यक्ति रहता था| उसे सभी लोग मनहूस कहते थे| उसके बारे में यह किंवदंती मशहूर थी कि जो प्रात: उसका मुंह देख लेता था उसे दिन भर भोजन भी नसीब नहीं होता था|
इसका प्रयोग साबुत और धुली हुई दाल के रूप में किया जाता है| यह पचने में हल्की तथा मल को बांधने वाली होती है| यह गर्म, शुष्क, रक्त को बढ़ाने वाली तथा रक्त को गाढ़ा करने वाली होती है| वातकारक होने के कारण शरीर में रूक्षता की वृद्धि करती है| इसके नियमित सेवन से कफ की विभिन्न बीमारियां तथा पित्त आदि विकार नष्ट होते हैं|
शुक्रवार के दिन मां संतोषी का व्रत-पूजन किया जाता है. संतोषी माता को हिंदू धर्म में संतोष, सुख, शांति और वैभव की माता के रुप में पूजा जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता संतोषी भगवान श्रीगणेश की पुत्री हैं. माता संतोषी का व्रत पूजन करने से धन, विवाह संतानादि भौतिक सुखों में वृद्धि होती है. यह व्रत शुक्ल पक्ष के प्रथम शुक्रवार से शुरू किया जाता है. सुख, सौभाग्य की कामना से माता संतोषी के 16 शुक्रवार तक व्रत रखे जाने के विधान है.
युवावस्था में जब शरीर में खून की गरमी पैदा हो जाती है तो वायु और कफ उस गरमी को शरीर से बाहर नहीं निकलने देते| उस दशा में त्वचा में गांठें या फुंसियां निकल आती हैं जो मुंहासे कहलाते हैं| ये उन लोगो को ज्यादा