Chapter 127
“Vaisampayana said, ‘Hearing in that assembly of the Kurus these wordsthat were disagreeable to him, Duryodhana replied unto the mighty-armedKesava of great fame, saying.
“Vaisampayana said, ‘Hearing in that assembly of the Kurus these wordsthat were disagreeable to him, Duryodhana replied unto the mighty-armedKesava of great fame, saying.
“Sanjaya said, ‘After the divisions of the Kuru army had been (thus)arrayed, and a loud uproar, O sire, had, arisen; after drums andMridangas began to be beaten and
“Vrihadaswa said, ‘After Rituparna of prowess incapable of being baffledhad, in the evening, arrived at the city of the Vidarbhas, the peoplebrought unto king Bhima the tidings (of his arrival).
“Vaisampayana said, ‘The Pandavas, having established such a rule,continued to reside there. By the prowess of their arms they brought manykings under their sway. And Krishna became obedient unto all the fivesons of Pritha, those lions among men, of immeasurable energy.
“Yudhishthira said, ‘O Bharata, of the two things charity and devotion,do thou condescend to tell me, O sire, which is the better in this world?Do thou, by this, remove a great doubt from my mind.’
सुंदन वन में एक शेर रहता था| एक दिन भूख के मारे उसका बुरा हाल था| उस दिन उसे आसपास कोई शिकार नहीं मिला था| अभी वह थककर बैठा ही था कि कुछ दूरी पर एक पेड़ के नीचे एक खरगोश का शावक दिखाई दिया| वह पेड़ कि छाया में उछल-कूद रहा था| शेर उसे पकड़ने के लिए धीरे-धीरे आगे बढ़ा| खरगोश शावक ने शेर को अपनी ओर आते देखा तो वह जान बचाने के लिया दौड़ा|
एक बार भगवान श्रीकृष्ण बलरामजी के साथ हस्तिनापुर गए। उनके हस्तिनापुर चले जाने के बाद अक्रूर और कृतवर्मा ने शतधन्वा को स्यमंतक मणि छीनने के लिए उकसाया। शतधन्वा बड़े दुष्ट और पापी स्वभाव का मनुष्य था।
1 धृतराष्ट्र उवाच
कथं शांतनवॊ भीष्मॊ दशमे ऽहनि संजय
अयुध्यत महावीर्यैः पाण्डवैः सहसृञ्जयैः
शाम के समय बादशाह अकबर और बीरबल महल के बुर्ज पर टहल रहे थे| तभी उन्हें ‘पकड़ो-पकड़ो, चोर-चोर’ आदि की आवाजें सुनाई दीं| पता करने पर मालूम हुआ कि कोई चोर एक परदेसी को महल के सामने से ही लूट कर भाग गया है|