Homeतिलिस्मी कहानियाँ03 – राजा का न्याय | Raja ka Nyay | Tilismi Kahaniya

03 – राजा का न्याय | Raja ka Nyay | Tilismi Kahaniya

वह आदमी सभी का पीछा करने लगता है और सभी अपनी भागने की गति को और तेज कर देते हैं। सभी दोस्तों की आंखों में खौफ था और मन में बस यही सवाल था कि क्या यह सब सच है या फिर एक माया जाल?

करण: “तुम सभी लोग पेड़ के ऊपर चढ़ जाओ, मैं देखता हूं इसे। ये लो जयदेव तुम इस चिड़िया को पकड़ो, मुझे इस आदमी का सामना करना होगा नहीं तो यह किसी को भी नहीं छोड़ेगा।”

जयदेव: ”ठीक है करण।”

विदुषी: “हम सब इस पेड़ के ऊपर चढ़ जाते हैं। यह पेड़ काफी घना और मोटा है। हम गिरेंगे भी नही।”

जब उसके सारे दोस्त पेड़ पर चढ़ जाते हैं तो करण टॉबी (कुत्ता) के साथ एक पेड़ के पीछे छुप जाता है ताकि वह आदमी उसे ना देखें। थोड़ी देर बाद वहां पर वह आदमी उन सभी का पीछा करते हुए पहुंच जाता है।

वह आदमी (गुस्सा करते हुए): “छोडूंगा नहीं तुम लोगों को। तुमने अच्छा नही किया।”

और वह गुस्से में उन लोगों को यहां-वहां खोजने लगता है। तभी करण चुपके से पीछे से आता है और उस पर हमला कर देता है। देखते ही देखते दोनों में लड़ाई शुरू हो जाती है।

उस आदमी ने अपने हाथ में लकड़ी का एक डंडा लिया हुआ था और वह उसी डंडे से करण के ऊपर बुरी तरीके से प्रहार करने लगता है। पहले तो करण अपनी तलवार का इस्तेमाल नहीं कर रहा था लेकिन जब वह आदमी इतनी बुरी तरीके से उसके ऊपर हमला करने लगा था तो उसे ना चाहते हुए भी उस तलवार का इस्तेमाल करना पड़ा और उसने दो वार में ही उस आदमी को नीचे गिरा दिया।

करण (गुस्से में उसको अपनी तलवार की नोक पर रखते हुए): “यहां से चले जाओ, नहीं तो अच्छा नहीं होगा। आखिर तुम हम लोगों की जान लेना क्यों चाहते हो? और उस चिड़िया को क्यों मार रहे थे।”

आदमी: “मुझे वह चिड़िया दे दो नहीं तो अपनी जान से जाओगे।”

करण: “मैं तुम्हें वह चिड़िया नहीं दे सकता क्योंकि तुम उसकी जान लेने के लिए आतुर थे और मैंने यह सब अपनी आंखों से देखा है। और मुझे पता है कि वह चिडिया बोल भी सकती है।”

वह आदमी: “मैं किसी कारण से उस चिड़िया को किसी के हवाले नही करना चाहता। क्योंकि वह एक मायावी चिड़िया है और अगर किसी को उस चिड़िया के बारे में पता चल जाता तो गांव के सभी लोग उस चिड़िया के पीछे पड़ जायेगे।”

करण: “मायावी चिड़िया! क्या मतलब है तुम्हारा।”

आदमी: “मुझे वह चिड़िया और तलवार दे दे समझा, नहीं तो तेरी जान नहीं बख्शुंगा। बहुत बड़ी गलती कर रहा है तू। दे दे मुझे वह चिड़िया।”

करण बचपन से ही पशु पक्षियों से बहुत ज्यादा प्रेम करता था और वह सहन नहीं कर सकता था कि कोई किसी पक्षी या जानवर की बेरहमी से मार दे और वह उस आदमी को तो उस चिड़िया को किसी भी सूरत में मारने नहीं देने वाला था। वह आदमी हार नहीं मानता है, वह अचानक से जमीन से उठता है और करण पर फिर से हमला कर देता है लेकिन फिर से वह करण के सामने 2 मिनट भी नहीं टिक पाता।

दोनों में घमासान चल रही थी इसी बीच वे दोनों लड़ते लड़ते एक दल दल के गड्ढे के पास पहुंच जाते हैं जो कि उस जगह से थोड़ी ही दूर पर था। वह आदमी मौका देकर एक पेड़ के पीछे छिप जाता है।

करण (गुस्से में): “कहां है बुजदिल बाहर निकल, मैं कहता हूं बाहर निकल!”

तभी वह आदमी अचानक से पीछे से आता है और करण को उस दलदल के गड्ढे के अंदर धक्का देने ही वाला होता है कि करण वहां से हट जाता है और वह आदमी उसी दलदल में खुद गिर जाता है।

गड्ढा काफी गहरा था और वह आदमी उस दलदल के अंदर धसने लगता है। उस आदमी के ऊपर इतनी सारी मुसीबत आन पड़ी थी लेकिन फिर भी उस आदमी के चेहरे में कोई खौफ नहीं दिख रहा था।

समझ में नहीं आ रहा कि वह वाकई में एक इंसान था भी या नहीं?

बस इन्हीं कुछ प्रश्नों का जवाब आपको आगे के एपिसोड में पता चलेगा।

तो जब करण देखता है कि वह आदमी अब बहुत बुरी तरीके से दलदल के अंदर फस चुका है और थोड़ी ही देर में उसकी मौत हो जाएगी तो वह यह देख नहीं पाता है। उसको उस आदमी पर दया आ जाती है और वह उस आदमी को दलदल से निकालने का प्रयास करता है। सबसे पहले वह पेड़ की एक पतली टहनी को तोड़ता है और उसकी तरफ फ़ेकता है। वह आदमी उस टहनी को पकड़ता है और ताकत से खींचकर उस आदमी को दलदल से बाहर निकाल लेता है।

तभी वहां पर जयदेव भी आ जाता है। करण का ध्यान जयदेव के ऊपर चला जाता है और इसी बात का फायदा उठाकर वह आदमी फिर से करण के ऊपर हमला करता है और उससे उस तलवार को छीनने की कोशिश करता है।

तभी जयदेव को बहुत गुस्सा आता है और वह उस आदमी को फिर से उसी दलदल में फेंक देता है क्योंकि अगर वह ऐसा ना करता तो वह दोनों को ही मार डालता। उस आदमी पर तो खून सवार हो रखा था वह तो उस दिन किसी ने किसी की जान लेने वाला था।

करण: “बहुत-बहुत शुक्रिया जयदेव । तू ना होता तो ये मुझे मार डालता!”

जयदेव (मुस्कुराते हुए): ”इतनी सी बात के लिए तू क्या धन्यवाद बोल रहा है? तेरे लिए तो जान भी हाजिर है मेरे दोस्त!”

इसके बाद दोनों उस पेड़ के पास पहुंचते हैं जहां पर लव कुश और विदुषी चढ़े हुए थे।

करण: “चलो मित्रो, सभी लोग नीचे उतर जाओ, खतरा अब टल चुका है।”

सभी दोस्त पेड़ से नीचे उतर जाते हैं और तभी विदुषी करण को एक चौकाने वाली बात बताती है। वह करण को बताती है की शायद चिड़िया बहुत दूर से कहीं से उड़कर आई है और इसके बाद उसके साथ यह हादसा हो गया और वह बेहोश हो गई।

विदुषी (चिड़िया को अपने हाथ में पकड़े हुए): “अरे करण तुम्हें पता है, यह चिड़िया बार-बार तुम्हारा नाम ले रही थी। मुझे लगता है कि यह तुम्हें बहुत पहले से ही जानती है लेकिन कैसे?”

करण: “वही तो मुझे भी कुछ समझ में नहीं आ रहा है विदुषी! चलो हम इसे घर ले जाते हैं और इस को पानी पिलाते हैं लेकिन हां ध्यान रहे कि अभी किसी को कुछ भी नहीं बताना है।”

जयदेव: “हम सभी को यहां से जाना चाहिए म पता नही क्यों, अचानक से बहुत तेज हवाएँ चलने लगी है। देखकर तो ऐसा लग रहा है जैसे कि तूफान आने वाला है।”

करण: “हां! मैं मेरे कपड़ों में चिड़िया को छिपा लेता हूँ, वरना बेचारी मर जाएगी।”

सभी दोस्त हवा के दबाव के कारण सही से चल भी नही पा रहे थे और आंखें भी नही खोल पा रहे थे।

तो अगले एपिसोड में हम यह जानेंगे कि आखिर क्या होने वाला था और तूफान क्यों आने लगा?

FOLLOW US ON:
02 - लड़ाकू