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श्री गुरु नानक देव जी सतलुज नदी को पार करके सांई बुढण शाह के पास पहाड़ी स्थान पर पहुंच गए| इस वृद्ध फकीर के पास शेर और बूढ़ी बकरियां थी| उसने अपना एकांत में रहकर भक्ति का कारण बताया कि संसार में भ्रमण करके भक्ति नहीं हो सकती|

एक दिन श्री गुरु नानक देव जी ने मरदाने को एक टके का झूठ व सच्च खरीदने के लिए भेजा| मरदाना बहुत दुकानों पर गया पर उसे कहीं से भी सत्य और झूठ न मिला|

श्री गुरु नानक देव जी समुन्द्र के पश्चिमी तट के साथ-साथ मालाबार, गुजरात, बंबई आदि इलाकों में सत्यनाम का प्रचार करते हुए सिन्ध में उच्च पीरों के पास बहावलपुर आ गए|

श्री गुरु नानक देव जी ने सिआलकोट शहर में आकर बेरी के वृक्ष के नीचे अपना डेरा लगा लिया| इस स्थान के पास ही एक फकीर जिसका नाम हमजा गौंस था, मकबरे के हजूरे में बैठा था| वह यही कहता था कि यह शहर झूठों का है और इस शहर को मैंने श्राप से नष्ट कर देना है|

गुरु नानक देव जी बीकानेर के इलाके से गुजरते हुए दक्षिण की ओर जा रहे थे तो सरेवड़े साधु से मिले| वहां आपने सरेवड़ियों के धर्म सम्बन्धी चर्चा की|

श्री गुरु नानक देव जी मुसलमान पीरों के प्रसिद्ध ठिकाने सरसे में पहुंचे| पीरों ने पूछा सन्त जी! तप करना अच्छा है कि नहीं? गुरु जी ने उत्तर दिया अगर मन विकारी है और शरीर के बल करके विकार करता हो तो शरीर को निर्बल करके मन को शुद्ध बनाने के लिए तप करना ठीक है|

भगतू सिक्ख जो कि टिल्ले की पहाड़ी के नीचे बैठा था, उसने गुरु जी से प्रार्थना की यहां पानी की बहुत कमी है|

श्री गुरु नानक देव जी कान-फटे योगियों के डेरे टिल्ला बाल गुंदाई पहुंचे| इस डेरे का प्रधान अपने डेरे आए साधु-संतो व अतिथिगणों की वस्त्र व खाने-पीने से सेवा करते| वह आप बहुत ही साधारण भोजन खाते व वस्त्र पहनते|

श्री गुरु नानक देव जी अनन्त जीवों का सुधार व उद्धार करते हुए नागापटम से समुद्र के किनारे रामेश्वरम पहुंचे|

श्री गुरु नानक देव जी ऐमनाबाद से लाहौर आ गए| उस समय श्राद्धों के दिन थे| शाहूकार दूनी चन्द बहुत से ब्राह्मणों व सन्तों को भोजन करा रहा था| गुरु जी को भी महान सन्त समझकर भोजन खिलाने अपने घर ले गया|