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श्री गुरु नानक देव जी कान-फटे योगियों के डेरे टिल्ला बाल गुंदाई पहुंचे| इस डेरे का प्रधान अपने डेरे आए साधु-संतो व अतिथिगणों की वस्त्र व खाने-पीने से सेवा करते| वह आप बहुत ही साधारण भोजन खाते व वस्त्र पहनते|

श्री गुरु नानक देव जी अनन्त जीवों का सुधार व उद्धार करते हुए नागापटम से समुद्र के किनारे रामेश्वरम पहुंचे|

श्री गुरु नानक देव जी ऐमनाबाद से लाहौर आ गए| उस समय श्राद्धों के दिन थे| शाहूकार दूनी चन्द बहुत से ब्राह्मणों व सन्तों को भोजन करा रहा था| गुरु जी को भी महान सन्त समझकर भोजन खिलाने अपने घर ले गया|

श्री गुरु नानक देव जी बीजापुर के घने जंगल कजलीबन में योगियों के आश्रम पहुंचे| वहां योगियों के मुखी भृर्थरी ने आपसे योग धारण करने की बात की|

श्री गुरु नानक देव जी हेम कुन्ट के रास्ते बदरी नाथ पहुंचे| वे वहां कैलाश पर्वत पर सिद्ध-मण्डली के स्थान मानसरोवर के पास पहुँच गए| वहां गुरु जी को 84 सिद्ध व गोरख नाथ मण्डली मिली| उन्होंने गुरु जी से प्रश्न किया – हे बालक! आपको यहां कौन सी शक्ति लेकर आई है?

श्री गुरु नानक देव जी ने उत्तर दिशा की यात्रा समाप्त कर दी| कुछ समय करतारपुर की संगतों का कल्याण करते रहें

श्री गुरु नानक देव जी मक्के से चलकर मदीने आ गए| इस स्थान पर हजरत मुहम्मद साहिब दफनाएं गए थे| इसलिए यह मुसलमानों का बड़ा पूजनीय स्थान है|

श्री गुरु नानक देव जी रोम देश के सुलतान हमीद कारूँ को मिले| उसने बड़ी कंजूसी से ४० गंज दौलत इकट्ठी की हुई थी|

श्री गुरु नानक देव जी कारूँ से चलकर बगदाद शहर के पूर्व की पहाड़ी के नीचे जा बैठे| यहां का राजा अत्याचारी था|

श्री गुरु नानक देव जी मरदाने को साथ लेकर जब सिआलकोट आए थे तो एक मूले ने “मरना सच्च व जीना झूठ बताया था| उसी मूले को गुरु जी साथ लेकर गए थे, परन्तु कुछ दिनों के पश्चात् वह रास्ते से ही लौट कर वापिस आ गया|