श्रावण मास माहात्म्य – अध्याय-27 (श्रावण में करने योग्य कार्य)
भगवान शिव बोले-हे सनत्कुमार! अब आगे मैं तुम्हें श्रावण मास में कर्क, सिंह व संक्रांति होने पर जो भी कार्य किए जाते हैं, वह सब, सविस्तार बतलाता हूँ|
भगवान शिव बोले-हे सनत्कुमार! अब आगे मैं तुम्हें श्रावण मास में कर्क, सिंह व संक्रांति होने पर जो भी कार्य किए जाते हैं, वह सब, सविस्तार बतलाता हूँ|
भगवान शिव बोले-हे सनत्कुमार! श्रावण मास की अमावस्या को जो कुछ किया जाता है|
भगवान शिव बोले-हे सनत्कुमार! श्रावण मास में अमावस्या को सबके लिए सम्पत्ति प्रदायक पिठोर व्रत करना श्रेष्ठ होता है| सर्वाधिष्ठा बनने से कलश को ‘पीठ’ कहते हैं|
शिव बोले-हे सनत्कुमार! पूर्व काल में राक्षसों के अत्याचार से दुःखित हो पृथ्वी श्री ब्रह्माजी के पास गई| उसकी पुकार सुन कर ब्रह्माजी श्रीरसागर में गये|
भगवान शिव बोले-हे सनत्कुमार! श्रावण मास के कृष्ण-पक्ष की अष्टमी की अर्ध रात्रि को वृष कालीन चन्द्रमा में इस योग के आने पर देवकी ने कारागृह में वासुदेव-पुत्र कृष्ण को जन्म दिया|
भगवान शिव बोले – हे सनत्कुमार! श्रावण मास की शुक्ल-पक्ष की चतुर्थी तिथि को सब प्रकार के फलों को प्राप्त करनेवाला यह काम फलदायक संकटमोचन व्रत किया जाता है|
सनत्कुमार ने पूछा-हे प्रभु! अब आप कृपा कर मुझे पूर्णमाही व्रत की विधि के बारे में विस्तार से बतलाएं इसका माहात्म्य जानने से सुनने वालों और श्रवण के इच्छुकों की चाह और बढ़ जाती है|
भगवान शिव बोले-हे सनत्कुमार! अब मैं तुम्हें त्रयोदशी व चतुर्दशी व्रत के सम्बन्ध में विस्तार से बताता हूँ|
भगवान शिव बोले-हे सनत्कुमार! श्रावण मास में आने वाली दोनों एकादशियों के व्रत के लिये जो किया जाता है, वह मैं अब तुम्हें बतला रहा हूँ|
भगवान शिव बोले – हे सनत्कुमार श्रावण मास के शुक्ल-पक्ष की नवमी तिथि को यह व्रत शुरू करके अगले वर्ष के श्रावण महीने में अर्थात् बारह मास तक व्रत करके यह व्रत दशमी के दिन उद्यापन करके समाप्त करना चाहिए|