दिव्य कामना
भारतभूमि में एक शासक थे राजा रन्तिदेव| जन-कल्याण एवं आत्म-शुद्धि के लिए उन्होंने 48 दिन का व्रत किया|
भारतभूमि में एक शासक थे राजा रन्तिदेव| जन-कल्याण एवं आत्म-शुद्धि के लिए उन्होंने 48 दिन का व्रत किया|
अंगारों की तरह दिखते पलाश के फूल, आम के पेड़ों पर आये बौर, हरियाली से ढकी धरती और चारो और पीली सरसों बसंत ऋतु के शुभ आगमन की बधाई देते हैं वास्तव में बसंत पंचमी ऋतु परिवर्तन का ऐसा त्यौहार है, जो अपने साथ मद-मस्त परिवर्तन लेकर आती है|
एक शेर जिस गुफ़ा में रहता था उसी गुफ़ा में एक चूहे ने बिल बना रखा था| वह चूहा हमेशा शेर को परेशान करता रहता- वह कभी शेर के बाल कुतर देता, कभी पीठ पर नाचने-कूदने लग जाता- कभी-कभी तो वह शेर को काट भी लेता था| शेर उससे बहुत ही दुखी था|
यह एक पौराणिक कथा है। कुबेर तीनों लोकों में सबसे धनी थे। एक दिन उन्होंने सोचा कि हमारे पास इतनी संपत्ति है, लेकिन कम ही लोगों को इसकी जानकारी है। इसलिए उन्होंने अपनी संपत्ति का प्रदर्शन करने के लिए एक भव्य भोज का आयोजन करने की बात सोची। उस में तीनों लोकों के सभी देवताओं को आमंत्रित किया गया।
एक गाँव में चार पक्के मित्र रहते थे| उनमें से एक दर्जी था, एक सुनार, एक ब्राह्मण और एक बढ़ई था| "विकट समस्या" सुनने के लिए Play Button क्लिक करें | Listen Audio Your browser does not support the audio element. एक बार चारों ने निर्णय लिया कि
एक बार बलराम सहित ग्वाल-बाल खेलते-खेलते यशोदा के पास पहुँचे और यशोदाजी से कहा- माँ! कृष्ण ने तो आज मिट्टी खाई है। यशोदा ने कृष्ण के हाथों को पकड़ लिया और धमकाने लगी कि तुमने मिट्टी क्यों खाई है।
समुंद्र के किनारे एक टिटहरी दंपति रहता था| समय बीतने पर जब टिटहरी ने गर्भधारण किया तो उसने अपने पति से कहा, ‘स्वामी! आप तो जानते ही है कि यहाँ समय-समय पर ज्वार-भाटा आता रहता है| इससे मुझे अपने बच्चों के बह जाने की आशंका है| मेरा आपसे अनुरोध है कि आप किसी अन्य सुरक्षित स्थान पर चलिए|’
हिम्मतनगर में धर्मबुद्धि और कुबुद्धि नामक दो निर्धन मित्र रहते थे| दोनों ने दूसरे देश में जाकर धन कमाने की योजना बनाई और अपने साथ काफ़ी सामान लेकर विभिन्न क्षेत्रों में खूब भ्रमण किया और साथ लाए सामान को मुंहमाँगे दामों पर बेचकर ढेर सारा धन कमा लिया| दोनों मित्र अर्जित धन के साथ प्रसन्न मन से घर की ओर लौटने लगे|
एक समय की घटना है| श्री रामकृष्ण परमहंस रोज बहुत लगन से अपना लोटा राख या मिट्टी से मांजकर खूब चमकाते थे|