HomePosts Tagged "शिक्षाप्रद कथाएँ" (Page 118)

होरोशियों नेलसन एक दरिद्र लड़का था| जब उसके मामा मारीच साक्लेंग एक समुंद्री जलयान के कप्तान बने, तब उनके भांजे ने पत्र लिखकर उनसे प्रार्थना की कि वह उन्हें किसी नौकरी पर लगा दे|

ब्राह्मण वेशधारी विश्वामित्र एक बूढ़ी औरत के पास उसकी देखभाल करने के लिए शैव्या और रोहिताश्व को छोड़कर वापस विश्वामित्र के रूप में राजा हरिश्चंद्र के पास आए|

एक गांव में करैलची नाम का एक किसान रहता था | उसकी आमदनी इतनी अच्छी थी कि अपनी पत्नी और बेटी का पेट आसानी से पाल सके | करैलची ने अपनी बेटी किराली को बहुत लाड़-प्यार से पाला था | किराली अपने पिता को बहुत प्यार करती थी |

एक पंडित काशी से पढकर आये| ब्याह हुआ, स्त्री आयी| कई दिन हो गये| एक दिन स्त्री ने प्रश्न पूछा कि ‘पंडित जी महाराज! यह बताओ कि पापका बाप कौन है?’ पंडित जी पोथी देखते रहे, पर पता नहीं लगा, उत्तर नहीं दे सके| अब बड़ी शर्म आयी कि स्त्री पूछती है पापका बाप कौन है? हमने पढ़ाई की, पर पता नहीं लगा| वे वापस काशी जाने लगे| मार्ग में ही एक वैश्या रहती थी|

सूर्यास्त होने में अभी थोड़ा समय बाकि था| राजा हरिश्चंद्र अपने आपको बेचने के लिए नगर में निकल पड़े| परन्तु उन्हें किसी ने नहीं ख़रीदा| तब वे श्मशान घाट पर जा पहुचें| वंहा धर्म ने चाण्डाल का रूप बनाया और राजा के सामने आकार बोला, “अरे! तुम कौन हो और यंहा क्यों आए हो?”

महाराष्ट्र में समर्थ गुरु रामदास बाबा एक बहुत विचित्र संत हुए हैं| इस्म्के समंध में एक कथा प्रसिद्ध है| ये हनुमानजी के भक्त थे और इनको हनुमानजी के दर्शन हुआ करते थे| एक बार बाबा जी ने हनुमान जी से कहा कि ‘महाराज! आप एक दिन सब  लोगों को दर्शन दें|’ हनुमान जी से कहा कि ‘तुम लोगों को इकट्ठा करो तो मैं दर्शन दूंगा|’ बाबा जी बोले कि ‘लोगों को तो मैं हरिकथा से इकट्ठा कर लूँगा|’

उसी समय क्रोध में भरे हुए विश्वामित्र वंहा आ पहुहें और बोले, “क्या बात है हरिश्चंद्र! क्या तुम मेरी दक्षिणा देना नहीं चाहते?”

सर्दियों के दिन थे | कड़ाके की सर्दी पड़ रही थी | इस सर्दी में किसी को भी घर से बाहर निकलना अच्छा नहीं लगता था | एक दिन एक व्यापारी को किसी काम से शहर जाना पड़ा | वह अपने घोड़े पर सवार होकर चल दिया | सर्दी के मारे घोड़ा भी बहुत धीमी चाल चल रहा था |

संत महात्माओं को हमारी विशेष गरज रहती है| जैसे, माँ को अपने बच्चे की याद आती है| बच्चे को भूख लगते ही माँ स्वयं चलकर बच्चे के पास चली  आती है, ऐसे ही संत-महात्मा सच्चे जिज्ञासुओं के पास खींचे चले जाते हैं| इस विषय में एक कहानी सुनी है-