शंखचूड़ संहार (भगवान शिव जी की कथाएँ) – शिक्षाप्रद कथा
प्रजापति महर्षि कश्यप की कई पत्नियां थीं| उनमें से एक नाम दनु था| दनु की संतान दानव कहलाई| उसी दनु के बड़े पुत्र का नाम दंभ था|
प्रजापति महर्षि कश्यप की कई पत्नियां थीं| उनमें से एक नाम दनु था| दनु की संतान दानव कहलाई| उसी दनु के बड़े पुत्र का नाम दंभ था|
प्राचीन काल में रत्नभद्र नाम से प्रसिद्ध एक धर्मात्मा यक्ष गंधमादन पर्वत पर रहता था| उनके पूर्णभद्र नामक एक पुत्र उत्पन्न हुआ|
एक बार इंद्र सहित देवताओं ने भगवान शिव की परीक्षा करनी चाही| वह देवों के गुरु वृहस्पति के साथ कैलाश पर्वत पर पहुंचे|
एक श्रेष्ठ पुत्र की प्राप्ति हेतु भगवान शिव से आज्ञा लेकर पार्वती ने एक वर्ष तक चलने वाले पुण्यक व्रत का समापन किया|
पूर्वकाल में नर्मदा नदी के तट पर नर्मपुर नामक एक नगर था| वहां विश्वानर नामक एक मुनि रहते थे| वे परम शिव भक्त व जितेंद्रिय थे|
विवाह संपन्न होने के बाद शिव अपनी नवविवाहिता पत्नी पार्वती को साथ लेकर कैलाश पर्वत लौट आए| वहां नंदी ने पहले से ही तैयार कर रखी थी|
विवाह संपन्न होने के बाद शिव अपनी नवविवाहिता पत्नी पार्वती को साथ लेकर कैलाश पर्वत लौट आए| वहां नंदी ने पहले से ही तैयार कर रखी थी|
कर्ण को युद्ध में मार गिराने के लिए अर्जुन पाश्पतास्त्र प्राप्त करना चाहता था|
एक समय पृथ्वी पर लगातार बारह वर्षों तक भयंकर अकाल पड़ा| अकाल के समय न कहीं नभ पर बादल दिखाई दिए और न ही धरा पर कहीं हरियाली|
पूर्वकाल में शिलाद नामक एक धर्मात्मा मुनि ने अपने पितरों के आदेश से मृत्युहीन एवं अयोनिज पुत्र की कामना से भगवान शिव की कठोर तपस्या की|