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“सुकन्या! जंगल में सतर्क रहना| तुम ऐसी चीजें देखोगी और ऐसी समस्याओं से तुम्हारा सामना होगा, जिन्हें तुमने कभी देखा न होगा|” राजा शर्याति ने राजकुमारी सुकन्या को अंतिम सीख दी| सुकन्या सहेलियों के साथ जंगल में एक स्थान पर चली गयी|

पुराने जमाने की बात है। एक गुरुकुल के आचार्य अपने शिष्य की सेवा भावना से बहुत प्रभावित हुए। विद्या पूरी होने के बाद शिष्य को विदा करते समय उन्होंने आशीर्वाद के रूप में उसे एक ऐसा दिव्य दर्पण भेंट किया, जिसमें व्यक्ति के मन के भाव को दर्शाने की क्षमता थी।

प्राचीन समय में भद्राचलम नाम का एक राज्य था| उस राज्य का स्वामी महेन्द्रादित्य नाम का एक राजा था| राजा महेन्द्रादित्य के दो बेटे थे| बड़े बेटे का नाम सुबल कुमार और छोटे बेटे का नाम निर्मल कुमार था|

एक सिंह का शावक युवा हो गया| तब उसने जाना कि शेर जंगल का राजा होता है| उसने इसकी सत्यता जाननी चाही| वह अपनी माँद से निकला, गरजा और भागते हुए जानवरों को देख प्रसन्न हो गया|

पुराने जमाने की बात है। एक राजा ने दूसरे राजा के पास एक पत्र और सुरमे की एक छोटी सी डिबिया भेजी। पत्र में लिखा था कि जो सुरमा भिजवा रहा हूं, वह अत्यंत मूल्यवान है। इसे लगाने से अंधापन दूर हो जाता है। राजा सोच में पड़ गया। वह समझ नहीं पा रहा था कि इसे किस-किस को दे। उसके राज्य में नेत्रहीनों की संख्या अच्छी-खासी थी, पर सुरमे की मात्रा बस इतनी थी जिससे दो आंखों की रोशनी लौट सके।

प्राचीन काल में हिमालय की तलहटी में विलासपुर नाम का एक नगर बसा हुआ था| उस नगर का राजा था – विनयशील! विनयशील की आयु जब ढलने लगी तो उसकी जवान रानियों ने उसकी उपेक्षा करनी शुरू कर दी|

प्राचीन काल में पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना) नगर में राजा विक्रमसेन का शासन था| इस प्रतापी राजा के पास ‘विदग्ध चूणामणि’ नाम का एक ऐसा तोता था, जिसे अपने दिव्य ज्ञान से समस्त शास्त्रों का ज्ञान था| वह विलक्षण लक्षणों से युक्त तोता बड़े ही सहज रूप में मनुष्यों की भाषा बोल और समझ लेता था| राजा उस तोते से बहुत प्यार करता था और उसे चूणामणि कहकर संबोधित करता था|

एक व्यक्ति ने सर्वाधिक मूल्यवान एक किलो अंगूर ख़रीद| जब वह जाने लगा, तब दुकानदार ने पैसे माँगे| उसने कहा कि रुपये नहीं है| दुकानदार ने मूल्य को तीन बार कम किया, किन्तु उस व्यक्ति के पास वह भी देने के लिए पैसे न थे| गुस्से से दुकानदार ने पूछा, “जब तुम्हारे पास पैसे न थे, तब तुमने महँगे अंगूर क्यों ख़रीदे?”

सवाल उठते है कि आदमी किस प्रकार शिष्ट अथवा सज्जन बन सकता है? एक सीख तो यही है कि शिष्टों या सज्जनों का अनुसरण किया जाए तो व्यक्ति सज्जन बन सकता है|