HomePosts Tagged "शिक्षाप्रद कथाएँ" (Page 84)

अकबर के दरबार में श्रीपति नाम का कवि था। दूसरे दरबारी अकबर की प्रशंसा करते थे, जबकि वह श्रीराम का ही गुणगान करता था। फिर भी अकबर उसे पुरस्कार देते थे। इससे दरबारी उससे जलने लगे थे।

पांडवों ने अब पांचाल का रास्ता पकड़ा| वहां के राजा द्रुपद (जिन्हें अर्जुन, द्रोण के सामने बंदी बनाकर लाये थे) की कन्या, राजकुमारी द्रौपदी का स्वयंवर होने वाला था|

‘मृत्यु क्या कर सकती है? मैंने मृत्युंजय शिव की शरण ली है|’ श्वेत मुनि ने पर्वत की निर्जन कंदरा में आत्मविश्वास का प्रकाश फैलाया| चारों ओर सात्विक पवित्रता का ही राज्य था, आश्रम में निराली शांति थी| मुनि की तपस्या से वातावरण की दिव्यता बढ़ गई|

एक राक्षस था| उसने एक आदमी को अपनी चाकरी में रखा आदमी बड़ा भला था, राक्षस जो भी कहता वह फौरन कर देता, लेकिन राक्षस तो राक्षस ठहरा! उसे इतने से ही संतोष न होता| वह बात-बात पर आंखें फाड़कर कहता – “काम में जरा-भी ढील हुई तो मैं तुझे जिंदा नहीं छोडूंगा|”

किसी नगर में एक आदमी रहता था| वह पढ़ा-लिखा और चतुर था| एक बार उसमें धन कमाने की लालसा पैदा हुई| उसके लिए उसने प्रयत्न आरंभ किया| देखते-देखते उसके पास लाखों की संपदा हो गई, पर उसके पास ज्यों-ज्यों पैसा आता गया, उसका लोभ बढ़ता गया| साथ ही धन का ढेर भी ऊंचा होता गया|

कदीशा की घाटी में, जिसमें होकर एक वेगवती नदी बहती थी, दो छोटे-छोटे जल प्रवाह आ मिले और परस्पर बातचीत करने लगे। एक जल प्रवाह ने पूछा- मेरे मित्र! तुम्हारा कैसे आना हुआ, रास्ता ठीक था न? दूसरे ने उत्तर दिया- रास्ते की न पूछो बड़ा ही बीहड़ था।

एक बार की बात है भारतीय दूरदर्शन या टेलीविजन का पहला कार्यक्रम था| टेली-क्लब के सदस्य एवं कुछ आमंत्रित एकत्रित हुए थे| प्रोड्यूसर श्री देशपांडे ने कार्यक्रम की पूरी तैयारी की हुई थी, पर सारा कार्यक्रम जम नहीं रहा था|

चलते-चलते पांडवों एकचक्र नामक नगर पहुंचे| वहां एक गरीब ब्राह्मण के घर उन्हें शरण मिली| धीरे-धीरे दिन गुजर रहे थे| एक दिन कुंती ने ब्राह्मण और ब्राह्मणी को विलाप करते देखा और पूछा, “आप इतने दुखी क्यों हैं?” ब्राह्मणी ने उत्तर दिया, “इस नगरी के पास बका नामक एक राक्षस रहता है|

एक बार ऋषियों ने सूत जी से पूछा- ‘भगवान्! आप ऐसा उपाय बताएँ, जिससे सभी पापों से छुटकारा मिल जाए, अलक्ष्मी (दरिद्रा) छोड़ कर चली जाए और निरंतर लक्ष्मी का निवास हो|’ सूत जी ने कहा- ‘ऋषियों! इसके लिए मनुष्य को निरंतर विहित कर्म करते हुए भगवान् के नाम का जप करना चाहिए|