HomePosts Tagged "शिक्षाप्रद कथाएँ" (Page 36)

बहुत दिनों की बात है| हाथियों का एक बड़ा झुण्ड एक जंगल में रहता था| एक बड़े दांतों वाला विशालकाय हाथी उस दल का राजा था| यह गजराज अपने दल की देखभाल बड़े प्यार और ध्यान से करता था|

गौतम ऋषि के पुत्र का नाम शरद्वान था। उनका जन्म बाणों के साथ हुआ था। उन्हें वेदाभ्यास में जरा भी रुचि नहीं थी और धनुर्विद्या से उन्हें अत्यधिक लगाव था। वे धनुर्विद्या में इतने निपुण हो गये कि देवराज इन्द्र उनसे भयभीत रहने लगे।

एक बार की बात है एक विद्यालय में एक भाषण प्रतियोगिता का आयोजन किया गया| प्रतियोगिता का विषय था- “हम प्राणियों की सेवा कैसे कर सकते हैं?” विद्यालय में प्रतियोगिता शुरु हो गई|

एक बार की बात है तीन नवयुवक एक शहर में रहते थे| तीनों बड़े गहरे मित्र थे| उनमें से एक राजकुमार था, राजा का सबसे छोटा बेटा| दूसरा राजा के मन्त्री का पुत्र था और तीसरा था एक धनी व्यापारी का लड़का|

पंडित पुरचुरे शास्त्री महाराष्ट्र प्रदेश के शास्त्रों के बड़े पंडित थे, परंतु वह महारोग कोढ़ से पीड़ित हो गए थे, फलतः अपनी कुरुपती के बावजूद, परिवार, समाज, जनसमाज से लगभग उपेक्षित हो गए थे|

सुरंग के रास्ते लाक्षागृह से निकल कर पाण्डव अपनी माता के साथ वन के अन्दर चले गये। कई कोस चलने के कारण भीमसेन को छोड़ कर शेष लोग थकान से बेहाल हो गये और एक वट वृक्ष के नीचे लेट गये। माता कुन्ती प्यास से व्याकुल थीं इसलिये भीमसेन किसी जलाशय या सरोवर की खोज में चले गये। एक जलाशय दृष्टिगत होने पर उन्होंने पहले स्वयं जल पिया और माता तथा भाइयों को जल पिलाने के लिये लौट कर उनके पास आये। वे सभी थकान के कारण गहरी निद्रा में निमग्न हो चुके थे अतः भीम वहाँ पर पहरा देने लगे।

यूनान के विवरण में लिखा है कि सिकंदर के शासन के विरुद्ध भारत का बुद्धिजीवी वर्ग अपना उग्र रोष हर दृष्टि से प्रकट करने के लिए तत्पर था| सिकंदर के विरुद्ध एक भारतीय राजा को भड़काने वाले ब्राह्मण से यवनराज सिकंदर ने पूछा- “तुम क्यों इस राजा को मेरे विरुद्ध भड़काते हो?”